Story of Avatar: पहले अवतार से जुड़ी है भगवान के दूसरे अवतार की कथा, धरती की इस तरह की थी रक्षा

Story of Avatar: सृष्टि के आरंभ में भगवान ने मत्स्य अवतार के बाद लिया था श्रीवराह अवतार। आसान शब्दों में समझें तो विशाल जंगली शूकर के रूप में प्रकट हुए थे भगवान। समुद्र में समा चुकी धरती की रक्षा के लिए भगवान हुए थे प्रकट। चलिए जानते हैं यह पौराणिक कथा।

Story of Varah Avatar

भगवान विष्णु के अवतार की पौराणिक कथा

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
  • भगवान श्रीहरि विष्णु ने श्रीवराह रूप में लिया था दूसरा अवतार
  • समुद्र में डूबी धरती की रक्षा के लिए लिया था भगवान ने अवतार
  • वराह रूप में अपने सींगों पर धरती को उठाकर बाहर निकाला था
Story of Avatar: आपको हाल ही में प्रदर्शित हुयी दक्षिण भारतीय फिल्म कंतारा तो याद होगी। फिल्म में जिस भगवान की स्तुति की गयी है वो भगवान श्रीविष्णु के दूसरे अवतार श्रीवराह ही हैं। भगवान का ये अवतार सृष्टि के आरंभ में धरती की रक्षा के लिए हुआ था। भगवान विष्णु के श्रीवराह अवतार की कथा उनके प्रथम अवतार मत्स्य से जुड़ी है। आइये आपको सनातन धर्म से जुड़ी इस पौराणिक कथा से अवगत कराते हैं।
श्रीवराह अवतार की कथा
मत्स्य अवतार की सहायता से प्रलय में सृष्टि के अंशाें को राजा मनु ने बचाया था। इसके बाद ब्रह्मा से पुनः सृष्टिक्रम प्रारंभ करने की आज्ञा पाये हुए स्वायम्भुव मनु ने पृथ्वी को जल प्रलय में डूबता देखकर उनसे प्रार्थना की कि आप मेरे और मेरी प्रजा के रहने के लिए पृथ्वी के उद्धार का प्रयत्न करें, जिससे मैं आपकी आज्ञा का पालन कर सकूं। ब्रह्माजी इस विचार में पड़कर कि पृथ्वी तो रसातल में चली गयी है, इसे कैसे निकाला जाए, वे सर्वशक्तिमान श्रीहरि की शरण में गए।
उसी समय विचारमग्न ब्रह्माजी की नाक से अंगुष्ठप्रमाण एक वराह बाहर निकल पड़ा और क्षणभर में पर्वताकार विशालयरूप गजेंद्र जैसा होकर गर्जन करने लगा। शूकररूप भगवान पहले तो बड़े वेग से आकाश में उछले। उनका शरीर बड़ा कठोर था। त्वचा पर कड़े−कड़े बाल थे, सफेद दाढ़ें थीं, उनके नेत्रों से तेज निकल रहा था। उनकी दाढ़ें भी कर्कश थीं। फिर अपने वज्रमय पर्वत के समान कठोर कलेवर से उन्होंने जल में प्रवेश किया। बाणाें के समान पैने खुरों से जल को चीरते हुए वे जल के पार पहुंचे। रसातल में समस्त जीवाें को आश्रय देने वाली पृथ्वी को उन्होंने वहां देखा। पृथ्वी को वे दाढ़ों पर लेकर बाहर आए। जल से बाहर निकलते समय उनके मार्ग में विघ्न डालने के लिए महापराक्रमी हिरण्याक्ष ने जल के भीतर ही उन पर गदा से प्रहार करते हुए आक्रमण कर दिया। भगवान ने उसे लीलापूर्वक ही मार डाला। श्वेत दाढ़ों पर पृथ्वी को धारण किये, जल से बाहर निकले हुए तमाल वृक्ष के समान नीलवर्ण वराह भगवान को देखकर ब्रह्मादि को निश्चय हो गया कि ये भगवान ही हैं। भगवान श्री विष्णु के उस रूप को देखकर सभी देवताओं ने स्तुति की। जिस स्थान पर भगवान ने श्रीवराह अवतार लिया था उस स्थान को शूकर क्षेत्र वर्तान का सोरों, जिला कासगंज के रूप में जाना जाता है।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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