श्री हरि विष्णु के 24 अवतारों में पहला अवतार है मत्स्य अवतार, जानिए क्या है पौराणिक कथा
Story of Avatar: भगवान का अपने नित्य धाम से पृथ्वी पर लीला अवतरण ही अवतार कहा जाता है। नींद के कारण ब्रह्मा जी के मुख से निकले वेदों की रक्षा के लिए लिया था भगवान विष्णु ने पहला अवतार। आइये जानते हैं भगवान के मत्स्य रूप में प्रकट होने की कहानी।
मत्स्य अवतार
- भगवान श्रीविष्णु के हैं कुल 24 अवतार
- मत्स्य के रूप में लिया था भगवान ने पहला अवतार
- वेदों की रक्षा के लिए भगवान ने लिया था ये अवतार
Story of Avatar: श्रीभक्तमाल ग्रंथ के अनुसार भगवान का अपने नित्य धाम से पृथ्वी पर लीला अवतरण ही “अवतार” कहा जाता है। कल्पभेद से भगवान ने अनेक अवतार धारणकर अपने लीला चरित्र से संतजन−परित्राण, दुष्टदलन और धर्मसंस्थापन के कार्य किये हैं। उनके अनंत अवतार हैं, अनंत चरित्र हैं और अनंत लीला कथाएं हैं। भगवान के विशेष 24 अवतारों में से प्रथम अवतार मत्स्य का अवतार यानी एक मछली का अवतार था।
मत्स्य अवतार की कथा
ब्रह्माजी के सोने का जब समय आ गया और उन्हें नींद आने लगी, उस समय वेद उनके मुख से निकल पड़े और उनके पास ही रहने वाले हयग्रीव नाम दैत्य ने उन्हें चुरा लिया। ब्राह्म नामक नैमित्तिक प्रलय होने से सारे लोक समुद्र में डूब गए। श्रीहरि ने हयग्रीव की चेष्टा जान ली और वेदों का उद्धार करने के लिए मत्स्यावतार ग्रहण किया।
द्रविड़ देश के राजर्षि सत्यव्रत बड़े भगवत्परायण थे। वे मलयपर्वत के एक शिखर पर केवल जल पीकर तपस्या कर रहे थे। ये ही वर्तमान महाकल्प में वैवस्वत मनु हुए। एक दिन कृतमाला नदी में तर्पण करते समय उनकी अंजली में एक छोटी सी मछली आ गयी, उन्होंने उसे जल के साथ फिर नदी में छोड़ दिया। उसने बड़ी प्रार्थना की कि मझे जलजंतु खा लेंगे, मेरी रक्षा कीजिए। राजा ने उसे जलपात्र में डाल लिया। वह इतनी बढ़ी कि कमंडलु में स्थान न रहा, तब राजा ने उसे एक बड़े मटके में रख दिया। दो घड़ी में वह तीन हाथ की हो गयी तब उसे एक बड़े सरोवर में रख दिया। थाेड़ी ही देर में उसने महामत्स्य का आकार धारण किया। जिस किसी जलाशय में रखते, उसी से वह बड़ी हो जाती। तब राजा ने उसे समुद्र में छोड़ दिया। तब उस विशालकाय मछली ने राजा से समुद्र में न छोड़ने की प्रार्थना की। राजा समझ गए कि ये को दैव्य शक्ति हैं और बोले कि आप कौन हैं। आपने एक ही दिन में 400 कोस के विस्तार का सरोवर घेर लिया। आप अवश्य ही सर्वशक्तिमान सर्वान्तर्यामी अविनाशी श्रीहिर हैं। आपने यह रूप किस उद्देश्य से ग्रहण किया है?” तब भगवान ने कहा राजा से कहा कि अब से ठीक सातवें दिन पर सृष्टि में प्रलय आएगी, जिसमें तीनों लोक डूब जाएंगे। उस वक्त तुम संसार के सभी प्राणियों के सूक्ष्म शरीर, सप्त ऋषि एवं औषधि और बीजों को मेरे द्वारा भेजी गयी नाव में रख लेना।
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जब तक ब्रह्मा की रात्रि रहेगी, तब तक मैं तुम्हारी नौका को लिये समुद्र में विहार करूंगा और तुम्हारे प्रश्नों का उत्तर दूंगा। यह कहरक मत्स्य भगवान अन्तर्ध्यान हो गए।
प्रलयकाल में वैसा ही हुआ, जैसा भगवान ने कहा था। मत्स्यभगवान प्रकट हुए। उनका शरीर सोने के समान देदीप्यमान था और शरीर का विस्तार चार लाख कोस का था। शरीर में एक बड़ा भारी सींग भी था। वह नाव वासुकी नाग से सींग में बांध दी गयी। सत्यव्रत जी ने भगवान की स्तुति की। भगवान ने प्रसन्न होकर उन्हें अपने स्वरूप का संपूर्ण परम रहस्य और ब्रह्म तत्व का उपदेश किया, जो मत्स्यपुराण में है। ब्रह्मा की नींद टूटने पर भगवान ने हयग्रीव को मारकर श्रुतियां ब्रह्माजी को लौटा दीं।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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