Surdas Krishna Bhajan Lyrics: जन्माष्टमी पर गाएं सूरदास के कृष्ण भजन, यहां देखें लिरिक्स

Surdas Krishna Bhajan Lyrics: जन्माष्टमी पर कृष्ण भक्त भगवान कृष्ण के भजन सुनते हैं और गाते हैं। इस दिन भगवान कृष्ण के परम भक्त सूरदास के भी भजन गा सकते हैं। आइए यहां देखें भक्त सूरदास के कृष्ण भजन के लिरिक्स।

Surdas Krishna Bhajan

Surdas Krishna Bhajan

Surdas Krishna Bhajan Lyrics: सूरदास जी हिन्दी साहित्य में भक्तिकाल के प्रसिद्ध और महाने कवि थे। सूरदास भगवान कृष्ण के परम भक्त थे। उन्होंने बिना नेत्र के ही कृष्ण जी के कई पद और भजन गाये और लिखे हैं। सूरदास के भजनों में भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन मिलता है। जन्माष्टमी के दिन सूरदास के कृष्ण भजन गाने से और सुनने से साधक के मन प्रसन्न हो जाता है। जन्माष्टमी के दिन कृ्ष्ण भजन गाने से साधक को सुख, समृद्धि की प्राप्ति होती है। यहां पढ़ें सूरदास के मधुर भजनों के लिरिक्स।

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Surdas Krishna Bhajan Lyrics (सूरदास कृष्ण भजन लिरिक्स)

रे मन कृष्णा नाम कही लीजै

रे मन कृष्णा नाम कही लीजे,

रे मन कृष्णा नाम कही लीजे |

गुरु के वचन अटल करि मानहि,

साधू समागम कीजे,

रे मन कृष्णा नाम कही लीजे |

पढ़िए गुनिये भगति भागवद,

और कहाँ कथि कीजे

कृष्ण नाम बिनु जनम बाद ही,

बिरथा काहे जीजे,

कृष्णा नाम रस भयो जात है,

त्रिषावन्त है पीजे,

सूरदास हरी शरण ताकिये,

जनम सफल करि लीजे,

रे मन कृष्णा नाम कही लीजे ।

अब हों नाच्यौ बहुत गोपाल

अब हों नाच्यौ बहुत गोपाल।

काम क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ विषय की माल॥

महामोह के नूपुर बाजत, निन्दा सब्द रसाल।

भरम भरयौ मन भयौ पखावज, चलत कुसंगति चाल॥

तृसना नाद करति घट अन्तर, नानाविध दै ताल।

माया कौ कटि फैंटा बांध्यो, लोभ तिलक दियो भाल॥

कोटिक कला काछि दिखराई, जल थल सुधि नहिं काल।

सूरदास की सबै अविद्या, दूरि करौ नंदलाल॥

प्रभु, हौं सब पतितन कौ राजा

प्रभु, हौं सब पतितन कौ राजा।

परनिंदा मुख पूरि रह्यौ जग, यह निसान नित बाजा॥

तृस्ना देसरु सुभट मनोरथ, इंद्रिय खड्ग हमारे।

मंत्री काम कुमत दैबे कों, क्रोध रहत प्रतिहारे॥

गज अहंकार चढ्यौ दिगविजयी, लोभ छ्त्र धरि सीस॥

फौज असत संगति की मेरी, ऐसो हौं मैं ईस।

मोह मदै बंदी गुन गावत, मागध दोष अपार॥

सूर, पाप कौ गढ दृढ़ कीने, मुहकम लाय किंवार॥

दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी अँखियाँ प्यासी रे

दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी, अँखियाँ प्यासी रे |

मन मंदिर की जोत जगा दो, घाट घाट वासी रे ||

मंदिर मंदिर मूरत तेरी, फिर भी न दीखे सूरत तेरी |

युग बीते ना आई मिलन की पूरनमासी रे ||

द्वार दया का जब तू खोले, पंचम सुर में गूंगा बोले |

अंधा देखे लंगड़ा चल कर पँहुचे काशी रे ||

पानी पी कर प्यास बुझाऊँ, नैनन को कैसे समजाऊँ |

आँख मिचौली छोड़ो अब तो मन के वासी रे ||

निबर्ल के बल धन निधर्न के, तुम रखवाले भक्त जनों के |

तेरे भजन में सब सुख़ पाऊं, मिटे उदासी रे ||

नाम जपे पर तुझे ना जाने, उनको भी तू अपना माने |

तेरी दया का अंत नहीं है, हे दुःख नाशी रे ||

आज फैसला तेरे द्वार पर, मेरी जीत है तेरी हार पर |

हर जीत है तेरी मैं तो, चरण उपासी रे ||

द्वार खडा कब से मतवाला, मांगे तुम से हार तुम्हारी |

नरसी की ये बिनती सुनलो, भक्त विलासी रे ||

लाज ना लुट जाए प्रभु तेरी, नाथ करो ना दया में देरी |

तिन लोक छोड़ कर आओ, गंगा निवासी रे ||

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जयंती झा author

बिहार के मधुबनी जिले से की रहने वाली हूं, लेकिन शिक्षा की शुरुआत उत्तर प्रदेश की गजियाबाद जिले से हुई। दिल्ली विश्वविद्यायलय से हिंदी ऑनर्स से ग्रेजुए...और देखें

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