Chhath Prasad: ठेकुआ नाम कैसे पड़ा? क्या आप जानते हैं छठ के 'महाप्रसाद' का इतिहास

Thekua Prasad: ठेकुआ छठ पर्व का महाप्रसाद कहलाता है क्योंकि इसके बिना ये पर्व अधूरा माना जाता है। इसलिए अमीर हो या गरीब हर व्यक्ति छठ पूजा में ठेकुआ को प्रसाद रूप में जरूर शामिल करता है। लेकिन क्या आप जानते हैं ठेकुआ नाम पड़ा कैसे। इसके पीछे काफी दिलचस्प कहानी है।

ठेकुआ नाम कैसे पड़ा? नहीं जानते होंगे आप छठ के महाप्रसाद का इतिहास

Thekua Prasad: जब हम छठ पर्व के प्रसाद के बारे में बात करते हैं तो सबसे पहले हर किसी के जहन में ठेकुआ का ही नाम आता है। ठेकुआ गेंहू के आटे, बादाम, सौंफ, किशमिश, गुड़ और नारियल से तैयार किया जाता है (Thekua Kaise Banta Hai)। ये छठ पूजा का पारंपरिक प्रसाद है। जो छठी मैया को काफी प्रिय होता है। छठ पूजा के बाद ठेकुआ प्रसाद रूप में दोस्तों-रिश्तेदारों में बांटा भी जाता है। चलिए आपको बताते हैं कि ठेकुआ का इतिहास क्या है और इसका ये नाम कैसे पड़ा।

ठेकुआ का इतिहास (Thekua History In Hindi)

ठेकुआ का इतिहास काफी पुराना है। यह छठ पूजा का पारंपरिक प्रसाद है। मान्यताओं अनुसार ये छठी मैया का प्रिय प्रसाद भी माना जाता है। इसलिए कहा जाता है कि छठ मैया को इस महाप्रसाद का भोग लगाने से व्रती के घर-परिवार में सुख और समृद्धि की कभी कमी नहीं होती। छठ पूजा के समापन के बाद मुख्य रूप से ठेकुआ ही प्रसाद रूप में सभी लोगों में बांटा जाता है। ठेकुआ को खजुरिया या थिकरी के नाम से भी जाना जाता है। हालांकि ठेकुआ सबसे पहले किसने बनााया इसके निर्माता को लेकर कोई सही जानकारी तो उपलब्ध नहीं है। पर कुछ इतिहासकारों का मानना है कि करीब 3700 साल पहले ऋग्वैदिक काल में ठेकुआ जैसे किसी मिष्ठान 'अपूप' का जिक्र जरूर मिलता है। ये मिष्ठान ठेकुआ से काफी मेल खाता है। ठेकुआ के बारे में एक किंवदंती अनुसार जब भगवान बुद्ध ने ज्ञानप्राप्ति के बाद बोधिवृक्ष के पास 49 दिनों का व्रत रखा था। तो उस दौरान वहां से दो व्यापारी गुजरे और उन्होंने बुद्ध को आटे, घी और शहद से बना एक व्यंजन दिया, जिससे भगवान बुद्ध ने अपना उपवास खोला था। कहते हैं यह व्यंजन ठेकुआ ही था।

ठेकुआ नाम कैसे पड़ा?

ऐसी मान्यता है कि ठेकुआ नाम क्रिया 'ठोकना' से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है "हथौड़ा मारना" है। दरअसल ठेकुआ के आटे को पारंपरिक रूप से हथौड़े या अन्य किसी भारी वस्तु का उपयोग करके सांचे में दबाया जाता है। इसलिए इसे ठकुआ, ठेकरी, खजूर और रोठ आदि नामों से जाना जाता है। वहीं ठेकुआ नाम से जुड़ी एक दूसरी कहानी भी है जिसके अनुसार ठेकुआ का शब्द बिहारी भाषा से लिया गया है और जिसका मतलब होता है 'उठाना' या 'स्थापित करना'। छठ पूजा में छठी मैया की पूजा के समय व्रती छठ के प्रसाद को उठाते हैं और उसे व्रत के बाद पूजा आरती के समय खाते हैं। एक तरह से ठेकुआ का नाम छठ पूजा की विशेषता को दर्शाता है।

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