Vaikunth Ekadashi Vrat Katha: वैकुंठ एकादशी व्रत कथा हिंदी में यहां देखें

Baikunth Ekadashi Or Putrada Ekadashi Vrat Katha: पौष माह की इस एकादशी को वैकुंठ एकादशी (Vaikuntha Ekadashi), मोक्षदा एकादशी और पौष पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है। इसे मुक्कोटी एकादशी भी कहते हैं।

Vaikunth Ekadashi Vrat Katha

Vaikunth Ekadashi Vrat Katha: वैकुंथ एकादशी व्रत कथा

Vaikunth Ekadashi (Paush Putrada Ekadashi) Vrat Katha In Hindi: एकादशी व्रत को सभी व्रतों में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। 2 जनवरी को पौष माह की एकादशी मनाई जा रही है। इस एकादशी को वैकुंठ एकादशी, मोक्षदा एकादशी और पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वैकुंठ एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु के धाम वैकुंठ का द्वार खुला रहता है। इसलिए आज जो व्यक्ति सच्ची श्रद्धा से पूजन और व्रत करता है उसे मरने के बाद श्रीहरि के चरणों में स्थान मिलता है यानी उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। मान्यता है इस व्रत को करने से संतान प्राप्ति का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है। जानिए इस व्रत की पौराणिक कथा।

Putrada Ekadashi 2023 Vrat Katha In Hindi

वैकुंठ एकादशी कथा | Vaikuntha Ekadashi Vrat Katha

गोकुल नाम के नगर में वैखानस नाम का राजा राज्य करता था। उनके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण निवास करते थे। राजा अपनी प्रजा से काफी प्यार करता था। एक बार राजा ने अपने सपने में देखा कि उसके पिता नरक में कष्ट भोग रहे हैं। सुबह होते ही राजा ने अपने राज्य के ब्राह्मणों को अपना सपना सुनाया। राजा ने ब्राह्मणों से आगे कहा कि सपने में पिताजी की ऐसी हालत देख मैं परेशान हूं। ब्राह्मणों ने कहा, हे राजन यहां पास ही में ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है, वे आपकी इस परेशानी का समाधान जरूर करेंगे।

ब्राह्मणों की बातों को सुन राजा तुरंत ही पर्वत ऋषि के आश्रम के लिए निकल पड़े। आश्रम में जाकर राजा ने पर्वत ऋषि को साष्टांग दंडवत करते हुए अपनी चिंता बताई। राजा की व्यथा सुनकर पर्वत मुनि ने कहा, हे राजन आपके पिता ने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी, किंतु दूसरी पत्नी को ऋतुदान मांगने पर भी नहीं दिया। उसी पाप के चलते उन्हें नरक जाना पड़ा।

राजा ने अपने पिता को इस कष्ट से निकालने का उपाय पूछा पर मुनि बोले- हे राजन आप एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें। इससे आपके पिता की नरक से अवश्य मुक्ति होगी। राजा ने वैसा ही किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा के पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे, हे पुत्र तेरा कल्याण हो।

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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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