Vat Savitri Purnima Vrat Katha: सुहागिन यहां पढ़ें वट पूर्णिमा व्रत की सिद्ध कथा, विस्तार से जाने वट व्रत की कहानी व महत्व
Vat Purnima 2023 Vrat Katha in Hindi (वट पूर्णिमा व्रत कथा): हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्लप पक्ष की पूर्णिमा को वट सावित्री पूर्णिमा कहते हैं। वट सावित्री का व्रत रख सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा कर अपने पति की लंबी उम्र के लिए कामना करती हैं। इस साल ज्येष्ठ मास की वट पूर्णिमा 4 जून को मनाई जाएगी। यहां देखें वट पूर्णिमा व्रत की सिद्ध कथा।
Vat Savitri Purnima Katha in hindi
2023
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Vat Purnima Vrat Katha in Hindi, वट पूर्णिमा की कहानीहिंदू शास्त्रों में लिखी पौराणिक कथा के अनुसार, अश्वपति नाम के राजा एक थे, जिनकी एक ही संतान थी जिसका नाम देवी सावित्री था। माता पिता के लाड़, प्यार और दुलार के साथ पली बढ़ी सावित्री विवाह योग्य हुई, तब राजर्षि अश्वपति ने उसका विवाह द्युमत्सेन के बेटे सत्यवान से करवा दिया। विवाह के वक्त ही नारद जी ने अश्वपति को सत्यवान के अल्पायु होने के बारे में बताया। नारद मुनी के मुताबिक सत्यवान का विवाह के एक साल बाद ही मृत्यु को प्राप्त हो जाना निश्चित था। नारद मुनी की यह बात सुनकर राजर्षि अश्वपति डर गए और बेटी सावित्री को दूसरा वर चुनने के लिए कहने लगे, लेकिन बेटी सावित्री को पिता की बात नामंजूर थी। उसके बाद ही निश्चित समय पर सावित्री का विवाह सत्यवान से विधिपूर्वक संपन्न हो गया। शादी के बाद सावित्री सत्यवान और उसके माता पिता के साथ जंगल में रहने लगी।
Vat Savitri Purnima Vrat Mahatva
देवी सावित्री अपने पति सत्यवान की लंबी आयू के लिए विधिवत तरीके से व्रत रखने लगी। लेकिन जब नारद मुनी की भविष्यवाणी के अनुसार, जब सत्यवान के जीवन का अंतिम दिन आया तो उस दिन सावित्री भी उनके साथ लकड़ी काटने वन गईं थी। लकड़ी काटने के लिए सत्यवान एक पेड़ पर चढ़ने लगे, तभी उनके सिर में तेज दर्द हुआ। दर्द के कराह कर सत्यवान पेड़े से नीचे उतरे और एक घनी छाया वाले बरगद के पेड़ के नीचे पत्नि सावित्री की गोद में लेट गए।वहीं उसके कुछ देर बाद ही सावित्री ने देखा कि यमराज उसके पति के प्राण लेने आए हैं। जब यमराज सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे, तो सावित्री भी उन्हीं के साथ चलने लगी। यमराज ने देवी सावित्री को बहुत मना किया लेकिन सावित्री के प्यार और समर्पण के आगे यमराज की एक न चली।
Hindi me
सावित्री की हट देखते हुए यमराज ने उनसे तीन वरदान मांगने को कहा। यमराज की ये बात सुनकर सावित्री ने 100 पुत्रों की माता बनने का वरदान मांग लिया।लेकिन यमराज द्वारा दिया गया ये वरदान तभी पूरा होकर फलित हो पाता, जब यमराज उसके पति सत्यवान को ज़िंदा कर देते हैं। अब यमराज सावित्री को दिए गए अपने वचन से बंधे हुए थे, उसी वचन का मान रखते हुए उन्होंने सावित्री के पति सत्यवान के प्राण दोबारा लौटा दिए। प्राण लौटाने के बाद सत्यवान फिर से जीवित हो उठे, तभी से सभी सुहागन महिलाएं हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन वट पूर्णिमा का ये सिद्ध व्रत रखती हैं, ताकि उनके भी पति की आयु लंबी हो और उन्हें सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद प्राप्त हो।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर ट्रेनी कॉपी राइटर कार्यरत हूं। मूल रूप से मध्य प्रदेश के उज्जैन की रहने वाली लड़की, जिसे कविताएं लिखना, महिलाओं से ज...और देखें
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