Vijaya Ekadashi Katha: भगवान श्री राम ने भी रखा था ये व्रत, जानें विजया एकादशी व्रत की कथा
Vijaya Ekadashi Vrat Katha: मान्यता है कि विजया एकादशी व्रत भगवान श्री राम ने भी किया था। जानिए इस व्रत की पौराणिक कथा हिंदी में यहां।
भगवान श्री राम ने रावण पर विजय प्राप्त करने से पहले विजया एकादशी व्रत को किया था
फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी व्रत रखा जाता है। ये व्रत इस बार 16 फरवरी को पड़ा है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। मान्यता है कि जो व्यक्ति एकादशी पर भगवान विष्णु की विधि विधान पूजा करता है उस व्यक्ति को हर कार्य में विजय प्राप्त होती है। इस व्रत की चर्चा पद्म पुराण और स्कंद पुराण में की गई है। इस एकादशी व्रत का महत्व भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अर्जुन को बताया है। जानें विजया एकादशी व्रत की कथा।संबंधित खबरें
विजया एकादशी व्रत कथा (Viajaya Ekadashi Vrat Ktha In Hindi)
एक समय देवर्षि नारदजी ने जगत् पिता ब्रह्माजी से फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का विधान पूछा। तब ब्रह्माजी ने बताया कि विजया एकादशी का व्रत पुराने और नए पापों का नाश कर देता है। ये एकादशी समस्त मनुष्यों को विजय प्रदान करती है।संबंधित खबरें
त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्रजी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे श्री लक्ष्मण तथा सीताजी सहित पंचवटी में निवास करने लगे। वहां पर रावण ने जब सीता माता का हरण कर लिया था तब श्री रामचंद्रजी और लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीताजी की खोज में चल दिए।संबंधित खबरें
घूमते-घूमते जब वे मरणासन्न जटायु के पास पहुंचे तो जटायु उन्हें सीताजी का वृत्तांत सुनाकर स्वर्गलोक चला गया। कुछ आगे जाकर उनकी मुलाकात सुग्रीव से हुई और उन्होंने बाली का वध किया। हनुमानजी ने लंका में जाकर सीताजी का पता लगाया और उनसे श्री रामचंद्रजी और सुग्रीव की मित्रता का वर्णन किया। वहां से लौटकर हनुमानजी ने भगवान राम के पास आकर सब समाचार कहे।संबंधित खबरें
श्री रामचंद्रजी ने वानर सेना समेत लंका को प्रस्थान किया। जब श्री रामचंद्रजी समुद्र के किनारे पहुंचे तब उन्होंने मगरमच्छ से भरे उस अगाध समुद्र को देखकर लक्ष्मणजी से कहा कि इस समुद्र को हम किस प्रकार से पार करेंगे।संबंधित खबरें
तब लक्ष्मण ने कहा हे पुराण पुरुषोत्तम, आप आदिपुरुष हैं, सब जानते हैं। यहां से आधा योजन दूर पर कुमारी द्वीप में वकदाल्भ्य नाम के मुनि रहते हैं। उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं, आप उनके पास जाएं वो जरूर इसका उपाय निकालेंगे। लक्ष्मणजी के इस प्रकार के वचन सुनकर श्री रामचंद्रजी वकदाल्भ्य ऋषि के पास गए और उनको प्रमाण करके बैठ गए।संबंधित खबरें
मुनि ने भी उनको मनुष्य रूप धारण किए हुए पुराण पुरुषोत्तम समझकर उनसे पूछा कि हे राम! आपका यहां आना कैसे हुआ? राम जी कहा हे ऋषे! मैं अपनी सेना सहित यहां आया हूं और लंका जीतने जा रहा हूं। आप कृपा करके समुद्र पार करने का कोई उपाय बताएं। मैं इसी कारण आपके पास आया हूँ।संबंधित खबरें
वकदाल्भ्य ऋषि बोले कि हे राम! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रच करने से निश्चय ही आपकी विजय होगी, साथ ही आप समुद्र भी अवश्य पार कर लेंगे। फिर ऋषि ने राम जी को इस व्रत की विधि बताई। उन्होंने कहा कि दशमी के दिन स्वर्ण, चांदी, तांबा या मिट्टी का एक घड़ा बनाएं। उस घड़े में जल भरकर और पांच पल्लव रख घड़े को वेदिका पर स्थापित करें। उस घड़े के नीचे सतनजा और ऊपर जौ रखें। उस पर श्रीनारायण भगवान की मूर्ति स्थापित करें। एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर धूप, दीप, नैवेद्य, नारियल आदि से भगवान की पूजा करें।संबंधित खबरें
इसके बाद घड़े के सामने बैठकर पूरा दिन व्यतीत करें और रात्रि भर जागरण करें। द्वादशी के दिन नित्य नियम से निवृत्त होकर उस घड़े को किसी ब्राह्मण को दे दें। हे राम! यदि तुम भी इस व्रत को सेनापतियों सहित करोगे तो तुम्हारी विजय अवश्य होगी। श्री रामचंद्रजी ने ऋषि के कथनानुसार इस व्रत को किया। इस व्रत के प्रभाव से उन्होंने लंका पर विजय पा ली।संबंधित खबरें
अत: हे राजन्! जो कोई मनुष्य विधिपूर्वक इस व्रत को करता है उसकी दोनों लोकों में अवश्य विजय होगी। श्री ब्रह्माजी ने नारदजी से कहा था कि हे पुत्र! जो कोई इस व्रत के महात्म्य को पढ़ता या सुनता है, उसको वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।संबंधित खबरें
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लवीना शर्मा author
धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 सा...और देखें
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