Vikata Sankashti Chaturthi Vrat Katha: विकट संकष्टी चतुर्थी की कथा पढ़ने से हर मनोकामना होगी पूर्ण

Vikat Sankashti Chaturthi Vrat Katha: हर महीने में दो बार गणेश चतुर्थी पड़ती है। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं तो शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। 27 अप्रैल को वैशाख महीने की गणेश चतुर्थी है जिसे विकट संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। जानिए विकट संकष्टी चतुर्थी की कथा।

Vikata Sankashti Chaturthi Vrat Katha: विकट संकष्टी चतुर्थी की कथा पढ़ने से हर मनोकामना होगी पूर्ण

Vikat Sankashti Chaturthi Vrat Katha (विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा): विकट संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है। मान्यताओं अनुसार इस दिन व्रत रखने से जीवन के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। नारद पुराण अनुसार संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखने वालों को शाम में भगवान गणेश की विधि विधान पूजा करके कथा जरूर सुननी चाहिए। फिर रात में चंद्रोदय पर अपना व्रत खोलना चाहिए। कहते हैं इस व्रत को करने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। यहां जानिए संकष्टी चतुर्थी की कथा।

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विकट संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा (Vikat Sankashti Chaturthi Vrat Katha)

किसी समय एक राज्य में धर्मकेतु नाम का एक ज्ञानी ब्राह्मण रहता था जिसकी दो पत्नी थीं जिनमें एक का नाम सुशीला था और दूसरी का नाम चंचला था। सुशीला बड़े ही धार्मिक स्वभाव की थी जबकि चंचला का धर्म के प्रति बिल्कुल भी लगाव नहीं था। व्रत करने के कारण सुशीला बहुत कमजोर हो गई थी, जबकि चंचला की सेहत अच्छी थी। कुछ समय बाद सुशीला को एक पुत्री तो चंचला ने पुत्र की प्राप्ति हुई। ये देख चंचला ने सुशीला से कहा कि तुम इतने व्रत-उपवास करती हो तब भी तुम्हें पुत्री प्राप्त हुई जबकि मैंने तो कुछ भी नहीं किया लेकिन फिर भी मुझे पुत्र प्राप्त हुआ। चंचला की ये बातें सुशीला को बहुत बुरी लगी।

जब विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत आया तो सुशीला ने पूरे मन से ये व्रत किया। सुशीला की भक्ति से गणेशजी प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे एक पुत्र होने का वरदान भी दिया। सुशीला की ये कामना शीघ्र ही पूरी हो गई लेकिन दुर्भाग्यवश उसके पति धर्मकेतु की मृत्यु हो गई। जिसके बाद चंचला अलग घर में रहने लगी। सुशीला पति के घर में रहकर ही अपने बच्चों का पालन करने लगी। सुशीला का पुत्र बहुत ज्ञानी था, जिससे उसने अपना घर धन-धान्य से भर दिया।

ये देख चंचला को ईर्श्या होने लगी और मौका मिलते ही उसने सुशीला की पुत्री को कुएं में धकेल दिया। लेकिन भगवान गणेश ने उसकी रक्षा की। चंचला ने जब ये देखा कि भगवान गणेश स्वयं सुशीला के परिवार की रक्षा कर रहे हैं तो उसे अपने द्वारा किए गए कर्मों पर बड़ा पछतावा आया और उसने तुरंत ही सुशीला से माफी मांग ली। फिर सुशीला के कहने पर चंचला ने भी विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया। जिससे उसके घर पर गणेश जी की कृपा बरसने लगी।

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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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