Vinayak Chaturthi Katha In Hindi: विनायक चतुर्थी की संपूर्ण व्रत कथा हिंदी में यहां देखें

Vinayak Chaturthi Vrat Katha In Hindi: विनायक चतुर्थी को गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi), वरद चतुर्थी और संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi 2023) के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को भगवान गणेश की कृपा पाने के लिए रखा जाता है। जानिए विनायक चतुर्थी की व्रत कथा।

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Vinayak Chaturthi Vrat Katha: विनायक चतुर्थी व्रत कथा

Vinayak (Sankashti) Chaturthi Katha In Hindi: भगवान गणेश को प्रसन्न करने के लिए विनायक चतुर्थी के व्रत की काफी महिमा बताई जाती है। कहते हैं जो व्यक्ति सच्चे मन से ये व्रत रखता है उसकी सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। इस व्रत को गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) और संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi 2023) के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार गणेश चतुर्थी व्रत (Ganesh Chaturthi Vrat) महीने में दो बार पड़ता है। इसे कई जगह वरद चतुर्थी (Varad Chaturthi 2023) भी कहा जाता है। इस व्रत में दोपहर के समय गणपति बप्पा (Ganpati Bappa) की पूजा की जाती है। व्रत पूजा के दौरान विनायक चतुर्थी की कथा अवश्य पढ़ें। यहां देखें पूरी कथा।

विनायक चतुर्थी व्रत कथा (Vinayak Chaturthi Vrat Katha In Hindi)

विनायक चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। माता पार्वती ने शिव जी से चौपड़ खेलने के लिए कहा। इस खेल में हार-जीत का फैसला करने के लिए भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी। भगवान शिव ने उस पुतले से कहा कि 'बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, इसीलिए तुम बताना कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता?'
उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती के बीच खेल का प्रारंभ हो गया। यह खेल 3 बार खेला गया और तीनों ही बार माता पार्वती जीत गईं। खेल समाप्त होने पर उस बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा, तो उस बालक ने पार्वती माता की जगह महादेव को विजयी बताया।
यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने बालक को लंगड़ा होने और कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता पार्वती से माफी मांते हुए कहा कि माता मुझसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है।
बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता का दिल पिघल गया उन्होंने कहा- 'यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम्हारे कष्ट दूर होंगे' यह कहकर माता पार्वती चली गईं।
एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं, नागकन्याओं से भगवान गणेश के व्रत की विधि जानने के बाद बालक ने 21 दिन लगातार गणेशजी का व्रत किया। जिसके परिणामस्वरूप गणेशजी प्रसन्न हुए। उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा।
बालक ने कहा- 'हे विनायक! मुझे इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं'। भगवान गणेश ने बालक को वरदान दे दिया। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंचा और उसने अपनी कथा भगवान शिव को सुनाई।
चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती शिवजी से नाराज हो गई थीं। देवी को मनाने के लिए भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक भगवान गणेश का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती की नाराजगी दूर हो गई और वो स्वयं भगवान शिव से मिलने पहुंच गईं।
तब भगवान शंकर ने माता पार्वती को इस व्रत के बारे में बताया। यह सुनकर माता पार्वती के मन में अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से मिलने चले आए। तभी से ये व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है।
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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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