Akshya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया से मनाई जाती है त्रेता युग की शुरुआत, जानिए कब शुरू हुआ कौन सा युग
Akshya Tritiya 2024: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन से ही त्रेता युग की शुरुआत मानी जाती है। इस दिन का शास्त्रों में बहुत ही खास महत्व है। बहुत सारे कारणों के कारण अक्षय तृतीया का महत्व अधिक बढ़ जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं कौन सा युग कब से शुरू हुआ।
Akshya Tritiya 2024
Akshya Tritiya 2024: हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया के पर्व का खास महत्व है। इस दिन को धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। अक्षय तृतीया का त्योहार हर साल वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाई जाती है। पौराणिक मान्यता के अनुसार सतयुग और त्रेतायुग की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन से ही मानी जाती है। इसके साथ ही ये भी माना जाता है कि इसी तिथि पर द्वापर युग का अंत हुआ था। हिंदू धर्म के मान्यताओं के अनुसार चार युगों के बारे में बताया गया है। जो सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलयुग है। वर्तमान समय में कलयुग चल रहा है। ऐसा माना जाता है कि जब- जब धरती पर पाप अधिक बढ़ जाता है। तब- तब भगवान विष्णु का अवतार होता है। पापियों का नाश करने के बाद एक नये युग की शुरुआत होती है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि कौना या युग कब शुरू हुआ और उसका अंत कैसे हुआ।
कब शुरू हुआ कौन सा युगसतयुग
हिंदू धर्म शास्त्र के अनुसार सबसे पहला युग सतयुग माना जाता है। सतयुग की काल अवधि 4800 दिव्य वर्ष बताई जाती है। अर्थात सतयुग 17 लाख 28 हजार मानव वर्ष का था। ऐसी मान्यता है कि सतयुग में मनुष्य की आयु लगभग एक लाख वर्ष की करीब हुआ करती थी। सतयुग में पाप की कोई जगह ही नहीं थी। इस युग में पुण्य सबसे अधिक किये जाते थे। इस युग में भगवान विष्णु ने मत्सय, वराह और नरसिंह अवतार लिया। जब ब्रह्मा ने सतयुग की स्थापना की थी तब देव, गंधर्व के साथ- साथ दैत्यों की भी उत्पति हुई थी। सतयुग में श्री हरि ने शंखासुर, हरिणायक्ष का वध करने के लिए अलग- अलग अवतार लिया। धार्मिक ग्रंथ के अनुसार जब भगवान हरि ने दशरथ के घर राम रूप में जन्म लिया। उसी समय सतयुग की अवधि पूरी हुई और नये युग का जन्म हुआ।
त्रेतायुग
त्रेतायुग की शुरुआत भगवान विष्णु के राम अवतार में आने से मानी जाती है। इस युग में भगवान ने वामन और राम के रूप में अवतार लिया। इसके साथ ही परशुराम के रूप में अंश अवतार लिया। इस युग की काल अवधि 3600 दिव्य वर्ष मानी जाती है। अर्थात् 1296000 मानव वर्ष मानी जाती है। मान्याताओं के अनुसार इस युग में मनुष्य का जीवन काल 10000 वर्ष मानी जाती थी। इस युग में पाप की मात्र 25 प्रतिशत तक बढ़ गई थी और पुण्य केवल 75 प्रतिशत ही था। त्रेतायुग में रावण, कुंभकरण और बालि जैसे दानव का वध राम जी ने किया। राम जी के देह त्यागने के बाद फिर एक बार नये युग का आंरभ हुआ।
द्वापर युग
द्वापरयुग में भगवान विष्णु ने देवकी के गर्भ से कृष्ण रूप में अवतार लिया। हिंदू शास्त्र के अनुसार इस युग की काल अवधि 2400 दिव्य वर्ष मानी जाती है। मतलब 8 लाख 64 हजार मानव वर्ष मानी जाती है। इस युग में मनुष्य 1000 वर्ष तक जीते थे। इस युग में पाप 50 प्रतिशत और पुण्य भी 50 प्रतिशत रह गया। द्वापर युग में ही महाभारत जैसा महायुद्ध हुआ। इस युग में जब पाप बहुत अधिक बढ़ गया, तब हरि ने सबका एक- एक करके अंत किया। गंधारी ने कृष्ण को श्राप दे दिया। जैसे तुमने मेरे कुल का अंत किया है वैसे ही तुम्हारे कुल का सर्वनाश हो जाएगा। अंत यादव वंश का नाश हो गया और भगवान कृष्ण भी अपना देह त्यागकर बैंकुठ चले गए। युद्धष्ठिर ने राज पाठ प्रक्षित को दे दिया और खुद बैंकुठ की ओर बढ़े। पांडवों के जाते ही द्वापरयुग का अंत हो गया और कलयुग का आंरभ हो गया।
कलयुग
राजा प्रक्षित के कार्यभार संभालते ही कलयुग शुरू हो गया। वर्तमान समये में कलयुग चल रहा है। इस समय में पाप की मात्र 75 प्रतिशत हो गई है और पुण्य केवल 25 प्रतिशत तक सिमट कर रह गया है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार इस समय में कलयुग का प्रथम चरण ही है। कलयुग का आरंभ 3102 ईशा पूर्व से माना जाता है। इस समय में कलयुग ने 5123 वर्ष ही पूरे किये हैं। कलयुग के अंत में अभी 426880 वर्ष शेष हैं। ब्रह्म पुराण के अनुसार कलयुग के अंत तक व्यक्ति केवल 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा। कलयुग जैसे जैसे बढ़ता जाएगा। नद, नहर सब सूखते जाएं। मनुष्य ही मनुष्य का अंत करने लगेगा। मनुष्य धार्मिक कार्यों से दूरी बना लेगा। रिश्तों की सारी मर्यदा समाप्त हो जाएगी। जब पाप पूरी चरण सीमा पर होगा। तब भगवान श्री हरि का कल्कि अवतार होगा और पापियों का नाश होगा। उसके बाद कलयुग के समाप्त से फिर सतयुग का आरंभ होगा।
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