कौन थे भगवान परशुराम, जिन्होंने अपनी ही मां का कर दिया था वध, क्यों रहते थे इतने क्रोध में, रामायण में थी ये भूमिका

Who Was Parshuram (भगवान परशुराम कौन थे): हर साल अक्षय तृतीया पर परशुराम जयंती भी मनाई जाती है। हिंदू धार्मिक मान्यताओं अनुसार भगवान परशुराम श्री हरि विष्णु का ही अवतार माने जाते हैं। जिनका जिक्र रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण में भी मिलता है। जानिए भगवान परशुराम का रोचक इतिहास।

Who Was Parshuram

Who Was Parshuram

Who Was Parshuram (भगवान परशुराम कौन थे): हर साल वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया के साथ ही परशुराम जयंती भी मनाई जाती है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार इस दिन भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम जी का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने पापी और अधार्मिक राजाओं का अंत करने के लिए परशुराम जी के रूप में अपना छठवां अवतार धारण किया था। ऐसा माना जाता है कि भगवान परशुराम आज भी पृथ्वी पर ही निवास करते हैं। चलिए जानते हैं भगवान परशुराम के बारे में दिलचस्प बातें।

परशुराम भगवान के श्लोक

ऐसे 'राम' बनें परशुराम

भगवान परशुराम का बचपन का नाम राम था। मान्यता है कि उन्होंने भगवान शिव कठिन तपस्या की थी। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें युद्ध कला का ज्ञान और कई अस्त्र भेंट किए। लेकिन इन सभी अस्त्र-शस्त्र में से भगवान परशुराम को फरसा सबसे अत्यधिक प्रिय था। इस फरसे को ही परशु (कुल्हाड़ी) कहा जाता है। हमेशा अपने साथ फरसा रखने की वजह से ही इन्हें परशुराम कहा जाने लगा।

इसलिए भगवान परशुराम ने अपनी माता का किया था वध (Why Parshuram Bhagwan killed his mother?)

मान्यताओं अनुसार जब एक बार परशुराम की माता रेणुका स्नान करके आश्रम को लौट रही थीं तो उन्होंने गन्धर्वराज चित्रकेतु को जलविहार करते देखा। जिससे उनके मन में विकार उत्पन्न हुआ और वे खुद को नहीं रोक पाईं। उनके पति महर्षि जमदग्नि को ये बात पता चल गई। क्रोध में आकर महर्षि जमदग्नि ने अपने सभी पुत्रों से बारी-बारी अपनी मां का वध करने के लिए कहा, लेकिन किसी ने ऐसा नहीं किया। तब उन्होंने अपने पुत्रों को उनकी विचार शक्ति नष्ट होने का श्राप दे दिया।

फिर जब उनके पुत्र परशुराम वहां आए तब जमनग्नि ने उनसे यह कार्य संपन्न करने के लिए कहा। अपने पिता की आज्ञा मानते हुए उन्होंने तुरंत अपनी मां का वध कर दिया। यह देखकर महर्षि जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने पुत्र परशुराम से कोई वर मांगने के लिए कहा। तब परशुराम ने अपनी माता रेणुका को पुनर्जीवित करने और चारों भाइयों को ठीक करने का वरदान मांग लिया। साथ ही ये भी वरदान मांगा कि यहां जो कुछ हुआ है उसके बारे में किसी को स्मृति न रहे और अपने लिए अजेय होने का भी वरदान मांगा। महर्षि जमदग्नि ने उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी कर दीं।

इसलिए भगवान परशुराम ने क्षत्रियों का विनाश करने का लिया था संकल्प

ऐसा कहा जाता है कि परशुराम भगवान ने 21 बार धरती को क्षत्रियविहीन किया था। लेकिन ये बात पूरी तरह से सत्य नहीं है। दरअसल भगवान परशुराम ने सिर्फ हैहय वंश के क्षत्रियों का ही नाश किया था। यह पूरी कथा राजा सहस्त्रार्जुन से जुड़ी है जिनके साथ इनके पिता जमदग्नि ॠषि का कई बातों को लेकर विवाद था।

परशुराम जी के पिता जमदग्नि बहुत बड़े ऋषि थे। उसी दौरान एक बहुत घमंडी और अत्याचारी राजा हुआ करता था जिसका नाम सहस्त्रार्जुन था। कहते हैं एक बार राजा सहस्त्रार्जुन अपने सैनिकों के साथ महर्षि जमदग्नि के आश्रम पहुंचा। महर्षि ने राजा का अच्छे से स्वागत किया और उनके लिए खाने-पीने की भी उचित व्यवस्था की। तब महर्षि जमदग्नि के पास एक कामधेनु गाय थी जिसके दूध से उन्होंने राजा ही नहीं बल्कि उसकी पूरी सेना की भूख को भी शांत कर दिया था।

तब राजा सहस्त्रार्जुन के मन में उस गाय को लेकर लालच पैदा हो गया और उन्होंने जबर्दस्ती ये गाय महर्षि जमदग्नि के आश्रम से उठा ली। कहते हैं जब भगवान परशुराम को ये बात पता चली तो उन्होंने राजा सहस्त्रार्जुन का वध कर दिया। जिसके बाद राजा सहस्त्रार्जुन के पुत्र ने भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि की हत्या कर दी जिसके चलते भगवान परशुराम की मां भी पति वियोग में सती हो गईं। यह देख कर भगवान परशुराम ने प्रतिज्ञा ली कि वह पूरी सृष्टि से हैहय वंश के क्षत्रियों का 21 बार समूल नाश करेंगे।

चारों युग में परशुराम का जिक्र

सतयुग में भगवान परशुराम का जिक्र तब आता है जब गणेशजी ने परशुराम को भगवान शिव के दर्शन करने से रोक दिया था। तब क्रोधित होकर परशुराम जी ने उन पर परशु से प्रहार कर दिया था जिससे गणेश जी का एक दांत टूट गया था। त्रेतायुग में भी भगवान परशुराम का जिक्र तब आता है जब सीता स्वयंवर के समय भगवान श्रीराम ने शिव जी का धनुष उठाया और वह टूट गया था। इसके बाद परशुराम स्वयंवर के स्थान पर पहुंचे और शिव जी का टूटा धनुष देखकर क्रोधित हो गए। कहते हैं इसके बाद भगवान राम ने परशुराम जी को बताया कि वे भगवान विष्णु का ही अवतार हैं, इसके बाद ही परशुराम जी का क्रोध शांत हुआ था। कहते हैं द्वापर युग में उन्होंने झूठ बोलने के दंड स्वरूप कर्ण की सारी विद्या उस समय पर विस्मृत हो जाने का श्राप दिया जब उन्हें उनकी विद्या की सबसे ज्यादा जरूरत होगी। इसी श्राप के कारण महाभारत युद्ध में कर्ण की हार हुई थी। कल्कि पुराण में बताया गया है कि परशुराम जी ही कलयुग के कल्कि अवतार के गुरु भी होंगे।

परशुराम के शिष्य कौन कौन थे?

भगवान परशुराम के शिष्य भीष्म पितामह, गुरु द्रोणाचार्य और कर्ण थे। कल्कि पुराण अनुसार कलयुग में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार भी भगवान परशुराम के ही शिष्य होंगे।

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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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