Jagannath Rath Yatra History: क्यों विश्व प्रसिद्ध है जगन्नाथ रथ यात्रा, इन 10 बिंदुओं से समझें

Jagannath Rath Yatra 2023: जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत 20 जून से हो गई है और 28 जून को बहुड़ा यात्रा (Bahuda Rat Yatra 2023 Date) निकाली जाएगी। इस रथ यात्रा में शामिल होने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं। ये उत्सव पूरे 10 दिनों तक चलता है। जानिए जगन्नाथ रथ यात्रा के बारे में दिलचस्प बातें।

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Jagannath Yatra 2023: जगन्नाथ यात्रा की कहानी

Jagannath Rath Yatra 2023: जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत 20 जून से हो गई है। ये यात्रा भारत ही नहीं बल्कि दुनिया भर में प्रसिद्ध है। इस भव्य यात्रा की खूबसूरती किसी का भी मन मोह लेती है। कहते हैं इस यात्रा के दर्शन करने से व्यक्ति के सारे दुख दूर हो जाते हैं। पूरी में आज जगन्नाथ जी (Jagannath Rath Yatra God Name) उनकी बहन सुभद्रा और भाई बलराम रथ में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलेंगे। 21 जून को रात करीब 7.09 बजे वे अपनी मौसी के घर यानी गुंडिचा मंदिर में जाएंगे जहां ये 7 दिनों तक विश्राम करेंगे। इसके बाद घर लौटने की तैयारी शुरू होगी। रथों की वापसी की यात्रा को बहुड़ा यात्रा (Bahuda Rath Yatra 2023 Date) कहते हैं जो 28 जून को है। जानिए जगन्नाथ यात्रा की दिलचस्प बातें (Jagannath Rath Yatra History)

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जगन्नाथ रथ यात्रा का इतिहास (Jagannath Rath Yatra Story)

पौराणिक मान्यता अनुसार एकबार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा ने द्वारका देखने की इच्छा जताई। तब श्रीकृष्ण यानी जगन्नाथ भगवान ने और बलभ्रद जी ने अपनी बहन को रथ पर बैठाकर द्वारका की यात्रा करवाई थी। कहते हैं इसी उद्देश्य से हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है।

जगन्नाथ रथ यात्रा के बारे में 10 खास बातें

1. इस रथयात्रा के दौरान तीन अलग-अलग रथ निकाले जाते हैं जिसमें सबसे आगे बलराम का रथ, उसके पीछे सुभद्रा का रथ और उसके बाद जगन्नाथ भगवान का रथ होता है।

2. बलराम जी का रथ लाल और हरे रंग का होता है जिसे 'तालध्वज' कहते हैं। देवी सुभद्रा का रथा काले और नीले रंग का होता है जिसे दर्पदलन' या ‘पद्म रथ’ कहा जाता है। वहीं भगवान जगन्नाथ का रथ लाल और पीले रंग से तैयार किया जाता है जिसे 'नंदीघोष' या 'गरुड़ध्वज' कहते हैं।

3. इन रथ को नीम की लकड़ियों से बनाया जाता है। इसे तैयार करने के लिए नीम के स्वस्थ और शुभ पेड़ों की पहचान की जाती है। खास बात ये है कि इन रथों को बनाने के लिए किसी भी प्रकार की कील या कांटे का प्रयोग नहीं किया जाता।

4. इस रथयात्रा की शुरुआत हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होती है। ढोल, नगाड़ों और शंखध्वनि के बीच भक्त इन रथों को खींचते हैं। कहते हैं जिन लोगों को रथ खींचने का अवसर प्राप्त होता है वो भाग्यवान होते हैं।

5. जगन्नाथ मंदिर से निकलकर रथयात्रा गुंडीचा मंदिर पहुंचती है। यहां जगन्नाथ भगवान, बलराम जी और देवी सुभद्रा सात दिनों तक विश्राम करते हैं। इस मंदिर में भगवान के दर्शन को आड़प दर्शन कहा जाता है।

6. गुंडीचा मंदिर भगवान की मौसी का घर माना जाता है। कहते हैं ये वही जगह है जहां विश्वकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा देवी की प्रतिमाओं का निर्माण किया था।

7. कहते हैं रथयात्रा के तीसरे दिन देवी लक्ष्मी जगन्नाथ जी को खोजने यहां आती हैं। तब द्वैतापति दरवाजा बंद कर देते हैं, जिससे माता लक्ष्मी नाराज होकर रथ का पहिया तोड़ देती हैं। इसके बाद माता ‘हेरा गोहिरी साही पुरी’ नामक जगह पर चली जाती हैं, जहां देवी लक्ष्मी का मंदिर है। बाद में भगवान जगन्नाथ देवी लक्ष्मी को मनाने आते हैं।

8. आषाढ़ महीने की दशमी तिथि को रथ गुंडीचा मंदिर से पुन: मुख्य मंदिर की तरफ वापस लौटने के लिए तैयार हो जाता है। रथों की वापसी की यात्रा को बहुड़ा यात्रा कहते हैं।

9. मंदिर पहुंचने के बाद भी जगन्नाथ भगवान, बलराम जी और देवी सुभद्रा की प्रतिमाएं उनके रथ में ही रहती हैं। क्योंकि इनके आगमन के लिए द्वार अगले दिन यानी एकादशी पर खोले जाते हैं।

10. रथयात्रा एक सामुदायिक आनुष्ठानिक पर्व है। इस दौरान लोग अपने घरों में पूजा नहीं करते और न ही किसी प्रकार का व्रत रखाते हैं। वास्तव में इस रथयात्रा के दौरान आस्था का जो भव्य वैभव प्रदर्शन देखने को मिलता है, वह शायद ही कहीं देखने को मिले।

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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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