Puja Niyam : भगवान शिव की पूजा में क्यों वर्जित है शंख का प्रयोग, जानें ये पौराणिक वजह
Shankh ke Puja niyam: हिन्दू धर्म में हर पूजा पाठ में शंख का इस्तेमाल जरूर किया जाता है। लेकिन भगवान शिव की पूजा में शंख का रखना वर्जित है। जानें क्या है इसकी पौराणिक वजह।
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Shankh ke
मिला था ये वरदान
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विष्णु पुराण कथा के अनुसार दैत्यराज दंभ की कोई संतान नहीं थी। उनसे संतान प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु की कठोर तपस्या की। दैत्यराज दंभ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें मनोवांछित वर मांगने को कहा। यह सुनकर दैत्यराज दंभ ने भगवान विष्णु से महापराक्रमी पुत्र का वरदान मांगा। भगवान विष्णु तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गए और कुछ दिन बाद दैत्यराज दंभ के घर एक सुंदर पुत्र ने जन्म लिया। दैत्यराज दंभ ने अपने पुत्र का नाम शंखचुड़ रखा।
शंखचुड़ ने की कठोर तपस्या
शंखचुड़ पुष्कर में ब्रह्मा जी को प्रसन करने के लिए कठोर तपस्या की। शंखचुड़ के तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उससे वर मांगने को कहा। तब उसने वरदान में देवताओं के लिए अजेय होने का वरदान मांगा। यह सुनकर ब्रह्मा जी तथास्तु कहकर श्री कृष्णकवच देकर और उसे धर्मध्वज की कन्या तुलसी से विवाह करने की आज्ञा दी। ब्रह्मा जी की आज्ञा से तुलसी और शंखचुड़ का विवाह हुआ।
भगवान शिव वध करने में हुए असफल
ब्रह्मा जी से वरदान मिलने के बाद शंखचुड़ में घमंड आ गया। उसके अभिमान और अत्याचारों से से त्रस्त होकर देवतागण भगवान विष्णु के पास जाकर उनसे मदद मांगी। भगवान विष्णु ने पुत्र का वरदान दिया था इसलिए उन्होंने भगवान शिव से रक्षा करने की अनुग्रह की। लेकिन श्री कृष्णकवच और तुलसी के पवित्र धर्म की वजह से भगवान शिव भी शंखचूड़ का वध करने में असफल हो गए।
हड्डियों से हुआ शंख का जन्म
जब शिवजी शंखचुड़ को मारने में असफल हो गए तब भगवान विष्णु ने ब्राह्मण रूप धारण करके करके शंखचुड़ से श्रीकृष्ण कवच मांग लिया। इसके बाद उन्होंने शंखचुड़ का रूप धारण कर तुलसी की शील का हरण कर लिया। तब भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से शंखचुड़ का वध कर दिया। ऐसा कहा जाता हैं कि उसकी हड्डियों से ही शंख का जन्म हुआ था। क्योंकि शंखचुड़ भगवान विष्णु का बहुत प्रिय भक्त था, इसी वजह से भगवान विष्णु के पूजा में शंख और जल का होना शुभ माना जाता हैं। चूंकि भगवान शंकर ने शंखचुड़ का वध किया था, इसलिए उनकी पूजा में शंख का प्रयोग करना वर्जित होता है।
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हरियाणा की राजनीतिक राजधानी रोहतक की रहने वाली हूं। कई फील्ड्स में करियर की प्लानिंग करते-करते शब्दों की लय इतनी पसंद आई कि फिर पत्रकारिता से जुड़ गई।...और देखें
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