Manu Bhakar Bronz Medal: जसपाल राणा के अनोखे कोचिंग स्टाइल दिलाई मनु भाकर को पेरिस ओलंपिक में सफलता
मनु भाकर ने पेरिस ओलंपिक में महिलाओं की 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में कांस्य पदक जीतने के बाद बताई साझा किया अपनी सफलता का राज। टोक्यो की निराशा के बाद कैसे हासिल किया पेरिस में पदक?
पेरिस ओलंपिक में मनु भाकर कांस्य पदक जीतने के बाद खुशी का इजहार करती हुई
- मनु भाकर बनीं ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला
- जसपाल राणा को कोचिंग ने दिलाई उन्हें सफलता
- टारगेट पूरा नहीं करने पर देना पड़ता था मोटा जुर्माना
शेटराउ (फ्रांस): भारत की 22 वर्षीय युवा निशानेबाज मनु भाकर ने रविवार को पेरिस में टोक्यो ओलंपिक की असफलता की कहानी को पीछे छोड़ते हुए सफलता का नया इतिहास रच दिया। मनु ने महिलाओं की 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा के फाइनल में तीसरे स्थान पर रहते हुए कांस्य पदक अपने नाम किया। उनके पास सिल्वर मेडल जीतने का भी मौका था लेकिन वो मामूली अंतर से ऐसा करने से चूक गईं। बावजूद इसके वो भारतीय ओलंपिक इतिहास में सफलता का नया इतिहास लिखने में सफल हुईं। मनु निशानेबाजी में ओलंपिक पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला तो बनीं साथ ही वो ओलंपिक में मेडल जीतने वाली सबसे युवा निशानेबाज भी बन गईं।
जसपाल राणा ने लिखी मनु की सफलता की कहानी
मनु की पेरिस ओलंपिक में सफलता की कहानी के असली रचयिता भारत के पूर्व धाकड़ निशानेबाद जसपाल राणा हैं। राणा ने भारत के लिए राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में खूब पदक जीते लेकिन वो ओलंपिक में पदक नहीं जीत सके। लेकिन उन्होंने अपना ये सपना अपनी शिष्या मनु भाकर को ओलंपिक पोडियम पर पहुंचाकर पूरा कर लिया। मनु ने भी भगवत गीता के श्लोक ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’ अर्थात कर्म करो और फल की इच्छा ना करो को आत्मसात कर लिया और अंतत: उनकी सफलता रंग लाई और कांसा उनके हाथ लग गया।
यूथ ओलंपिक में स्वर्ण जीतकर बनीं थी स्टार
हरियाणा के झज्जर में जन्मी मनु साल 2018 में युवा ओलंपिक में 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने के बाद सुर्खियों में आईं। इसके बाद उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंच पर कई पदक जीते। अपने पहले ओलंपिक में मिली निराशा के बाद उन्होंने रविवार को 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर आखिरकार अपना सपना साकार कर लिया।एक ऐसे देश में जहां ओलंपिक पदक गिने चुने ही हैं तो कांस्य पदक भी सोने के बराबर ही लगता है। मनु ने अपने दूसरे ओलंपिक की तैयारी के लिए कोच जसपाल राणा द्वारा तैयार की गई दिनचर्या का पालन किया।
टोक्यो की हार से सीखा सबक
तीन साल पहले टोक्यो ओलंपिक में मिली हार से मनु ने सबक सीखे और पेरिस ओलंपिक में और मजबूती के साथ पहुंचीं। मनु ने कांस्य पदक जीतने के बाद कहा अगर मैं टोक्यो की असफलता से सबक नहीं लेती तो यहां तक नहीं पहुंचती। मनु ने कहा, 'टोक्यो में चीजें निश्चित रूप से योजना के अनुसार नहीं रही थीं लेकिन कहीं न कहीं मैं लापरवाह रही। मैं किसी न किसी कारण से पीछे रह गई। मुझे लगता है कि अगर आप कुछ नहीं जीत सकते तो आप उससे बहुत कुछ सीख सकते हैं। अगर टोक्यो का सबक नहीं होता तो मैं आज यहां नहीं होती।'
लक्ष्य पूरा नहीं करने पर भरना पड़ता था जुर्माना
राणा ने मनु के लिए स्पष्ट लक्ष्य निर्धारित किये हुए थे और अगर वह अपने कोच द्वारा दिये गये स्कोर को बनाने में विफल रहती तो उन्हें जुर्माना भरना पड़ता जिसका इस्तेमाल दुनिया भर के जरूरतमंदों की मदद के लिए किया जाता। मनु ने कहा,'उनका काम करने का तरीका बाकियों से काफी अलग है। आमतौर पर वह एक लक्ष्य निर्धारित करते हैं और अगर आप उतना स्कोर करते हैं तो ठीक है। और अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो उस स्कोर में जो अंक कम थे तो आपको उतना ही दान करना होता। मान लीजिए हमने 582 स्कोर का लक्ष्य बनाया और मैंने 578 स्कोर बनाया तो वो चार अंक 40 यूरो के बराबर होंगे। कभी कभी देश के हिसाब से 400 यूरो भी हो जाते।'
देहरादून में खिलाया गायों को हजारों रुपये का गुड़
राणा ने कहा,'मुझे याद है कि एक बार देहरादून में उन्होंने गायों को खिलाने के लिए हजारों रुपये का गुड़ खरीदा था। इस पैसे का इस्तेमाल दुनिया भर के भिखारियों को खिलाने में भी किया जाता है। हाल में हम लक्जमबर्ग में थे और उन्होंने एक रेस्तरां में कलाकारों को 40 यूरो दिये।
(भाषा इनपुट के साथ)
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