Nitish Reddy Century: मिडिल क्लास के सपनों को पंख देती है नीतीश रेड्डी की सफलता की कहानी

नीतीश कुमार रेड्डी ने मेलबर्न में आखिरकार सफलता का स्वाद चख लिया जिसके लिए पिता-पुत्र की जोड़ी एक दशत के संघर्ष कर रही थी। नीतीश कुमार रेड्डी की सफलता की कहानी फिल्मी है जो भारत के मध्यमवर्गीय परिवारों को अपने सपनों को पूरा करने के लिए पखं देती है।

नीतीश कुमार रेड्डी

मेलबर्न:नीतीश रेड्डी को 21 वर्ष के किसी भी अन्य युवा की तरह अपने टैटू बहुत पसंद हैं जो उन्हें उन तमाम कठिनाइयों की याद दिलाते हैं जो उनके परिवार ने उनके क्रिकेट खेलने के सपने को पूरा करने के लिए पिछले 10 वर्षों में सहन की हैं। रेड्डी के लिए क्रिकेटर बनना पसंद और मजबूरी दोनों थी। वह अपने माता-पिता के लिए कुछ करना चाहते थे, जिन्होंने अपने बेटे के भारत की तरफ से खेलने के सपने को पूरा करने के लिए काफी कड़ी मेहनत की।

लोगों की आंखों में देखना चाहते हैं पिता के लिए सम्मान

इस मध्यमवर्गीय परिवार ने रेड्डी को ऊंची उड़ान भरने की खुली छूट दी। इसके लिए उन्होंने अपनी आमदनी का बड़ा हिस्सा बेटे के सपने को पूरा करने पर लगाने का दाव खेला लेकिन अब उन्हें इसका कोई गिला नहीं है। रेड्डी को इस साल जब भारतीय टीम में चुना गया था तो उन्होंने तब पीटीआई से कहा था,'मैं उन लोगों की आंखों में अपने पिता के लिए सम्मान देखना चाहता हूं जिन्होंने मेरी प्रतिभा पर विश्वास करने के लिए उनका मजाक उड़ाया था।'

पिता के विश्वास की जीत की है कहानी

रेड्डी ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ यहां चौथे टेस्ट मैच में अपने करियर का पहला शतक पूरा करने के बाद ‘सालार’ शैली में इसका जश्न मनाया। यह उनका अपने पिता मुत्याला के प्रति सम्मान था जो भारतीय टीम के डग आउट के पीछे से अपने बेटे को यह बेहतरीन पारी खेलते हुए देख रहे थे। यह सफर सिर्फ रेड्डी का ही नहीं बल्कि उनके पिता के बलिदान और इस विश्वास का भी था कि उनका बेटा खास है।

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