भारत को 30-40 ओलंपिक मेडल जीतने के लिए करना होगा ये काम, बोले-अभिनव बिंद्रा

ओलंपिक में भारत के पहले गोल्ड मेडलिस्ट ने मौजूदा दौर के खिलाड़ियों की मानसिकता पर प्रतिक्रिया दी है। इसके अलावा उन्होंने ओलंपिक में मेडल की संख्या बढाने के लिए किए जाने वाले उपायों के बारे में भी ध्यान खींचा है।

अभिनव बिंद्रा (साभार-X)

भारत के पहले व्यक्तिगत स्पर्धा के ओलंपिक चैंपियन अभिनव बिंद्रा का मानना है कि खिलाड़ियों की मौजूदा पीढ़ी उनके समय के ‘कमजोर दिल’ वाले खिलाड़ियों की तुलना में अधिक मजबूत है। बीजिंग ओलंपिक (2008) में निशानेबाजी में स्वर्ण पदक जीतने वाले बिंद्रा ने 26 जुलाई से शुरू होने वाले ओलंपिक खेलों के लिए देश की तैयारियों पर फ्रांस के दूतावास और ‘इंडो-फ्रेंच चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (आईएफसीसीआई)’ के साथ आयोजित एक पैनल चर्चा के दौरान भारतीय दल को सलाह दी कि वे अतीत या भविष्य के बारे में सोचने की गलती न करें।

भारत के लगभग 125 खिलाड़ियों ने इन खेलों के लिए क्वालीफाई कर लिया है, जो देश के इतिहास में सबसे ज्यादा है। बिंद्रा ने कहा, ‘‘मैं एक ऐसी पीढ़ी से आया हूँ जो स्वभाव से कमजोर दिल वाली थी। आज के दौर के खिलाड़ियों का आत्मविश्वास कहीं अधिक है। वे इन खेलों में सिर्फ हिस्सा लेना नहीं बल्कि पदक जीतना चाहते है। ये खिलाड़ी कोई और पदक नहीं बल्कि स्वर्ण पदक जीतना चाहते है। यह हमारे समाज का प्रतिबिंब है कि पिछले कुछ वर्षों में यह कैसे विकसित हुआ है।’’

खेलो को लेकर बदला है खिलाड़ियों का नजरिया

इस 41 वर्षीय खिलाड़ी ने कहा कि खेलों को देखने और उसके बारे में बात करने का तरीका बदल गया है लेकिन जिस चीज में बदलाव नहीं आया है वह है एथलीटों को मिलने वाली कड़ी प्रतिस्पर्धा। बिंद्रा ने कहा, ‘‘ अब अलग तरह से बातचीत होती है। उसमें हालांकि कई समानताएं है, उन्हें पेरिस में अपना दमखम दिखाना होगा और उस विशेष दिन पर प्रदर्शन करना होगा। यह किसी भी तरह से आसान नहीं होने वाला है। उन्हें दबाव झेलना सीखना होगा। वर्षों से सीखी गयी प्रक्रिया, अपने कौशल को खेल में उतारने पर ध्यान केंद्रित करना होगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ एथलीटों की सबसे बड़ी गलती यह है कि वे या तो अतीत में जीते हैं या भविष्य के बारे में सोच रहे हैं। वे इस वास्तविकता के बारे में भूल जाते हैं मौजूदा समय की अहमियत सबसे ज्यादा है।’’

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