International Women's Day: लड़कियों के सपनों को नए पंख देने वाली है निख़त जरीन की सफलता की कहानी
साल 2022 में बॉक्सिंग में वर्ल्ड चैंपियन बनने वाली 28 वर्षाय भारतीय महिला मुक्केबाज की सफलता की कहानी ने भारत की लड़कियों को सफलता की उड़ान भरने और अपने सपनों को पूरे करने के लिए नए पंख दिए हैं। वो अपने नाम के अनुरूप काम करके मिसाल बनती जा रही हैं।
निख़त ज़रीन(साभार Nikhat zareen)
जैसा नाम वैसा काम
निख़त का मतलब होता है खुशबू और ज़रीन का मतलब होता है सोने से बनी। इन दिनों निख़त जरीन अपने नाम को हर तरह से सही साबित करती रही हैं। एक तरफ वो बॉक्सिंग रिंग में दमदार पंच जड़कर स्वर्णिम सफलता हासिल कर रही हैं। वहीं दूसरी तरफ सफलता की सुगंध पूरे देश में बिखेरकर हर उस लड़की के दिल-ओ-दिमाग में रच बस गई है जो परिवार और समाज के तानों को धत्ता दिखाकर, तमाम बंधनों को तोड़कर कुछ कर गुजरना चाहती है और दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाना चाहती है।
सानिया की कहानी को नए सिरे से लिख रही हैं निख़त
21वीं सदी की शुरुआत में सानिया मिर्जा के उदय ने भारत में खेलों में महिलाओं के वजूद और पहचान को बदलकर रख दिया। एक संभ्रांत मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखने वाली सानिया मिर्जा को भी टेनिस कोर्ट में स्कर्ट्स और शॉर्ट्स पहनकर कदम रखने से लेकर ग्रैंडस्लैम खिताब जीतने और दुनिया की नंबर एक टेनिस खिलाड़ी बनने तक तमाम बाधाओं को पार करना पड़ा। लेकिन उनकी सफलता की कहानी आज भारत की हर लड़की जानती है और कुछ वैसा की करना चाहती है।
जूनियर और सीनियर दोनों में बनीं वर्ल्ड चैंपियन
20 साल बाद तेलंगाना के निजामाबाद से ताल्लुक रखने वाली निख़त ज़रीन ने देश की लड़कियों के सपनों को उड़ान भरने के लिए नए पंख दिए हैं। एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली निख़त अपने जानदार पंचों से इतिहास के पन्नों में अपना नाम गहरे अक्षरों में दर्ज कराती जा रही हैं। साल 2011 में बॉक्सिंग में जूनियर वर्ल्ड चैंपियन बनीं निख़त को सीनियर स्तर पर वर्ल्ड चैंपियन बनने में 11 साल का वक्त लगा। इस मुकाम पर वो देर से ही आईं लेकिन दुरुस्त आईं। तुर्की में थाईलैंड की बॉक्सर को 5-0 से हराकर विश्व चैंपियन बनीं।
13 साल की उम्र में हुई बॉक्सिंग की शुरुआत
निख़त की उम्र महज 13 साल थी और वो आठवीं कक्षा में पढ़ रही थीं तब उन्होंने अपने माता-पिता से बॉक्सर बनने की इच्छा जताई थी। बॉक्सिंग की कोचिंग हासिल करने जब वो पहुंचीं और पूछा कि यहां लड़कियां क्यों नहीं हैं? क्या लड़कियां बॉक्सिंग नहीं करती हैं तो पिता ने बताया कि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ बॉक्सर माने जाने वाले मोहम्मद अली की बेटी लैला अली बॉक्सिर हैं और उन्हें पूरी दुनिया जानती हैं। बस इसके बाद क्या था वो एक ऐसा सफर पर निकल पड़ीं जहां केवल माता-पिता का सहयोग था और उनकी कड़ी मेहनत। जिसने मिलकर सफलता की एक ऐसी इबारत लिख डाली।
खेल का नहीं होता है कोई धर्म
आम तौर पर भारत में मुस्लिम समाज में लड़कियों को कई तरह की पाबंदियों में जीना पड़ता है। धर्म का हवाला देकर लड़कियों को घर से बाहर निकलने, काम करने और खेल-कूद में हिस्सा लेने की पाबंदियां हैं। लड़कियां कब, कहां और कैसे कपड़े पहनें यह भी उन्हें कोई और बताता है। लेकिन निख़त का मानना है कि खेल का कोई धर्म नहीं होता। खेल का एकमात्र लक्ष्य होता है देश के लिए मेडल जीतकर उसका गौरव बढ़ाना और ये काम वो बखूबी करती आ रही हैं। इसी वजह से वो एक मिसाल बनती जा रही हैं।
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