Blog: महिला पहलवानों का विरोध, मामला शोषण का है ही नहीं!

पुरुष आयोग की अध्यक्ष बरखा त्रेहन ने जंतर-मंतर पर हो रहे पहलवानों के विरोध प्रदर्शन को लेकर अपनी राय रखी है। उन्होंने लिखा है कि यह देश को बदनाम करने की कोशिश है और इससे पहले भी ऐसा प्रयास किया जा चुका है। उन्होंने इन पहलवानों को आन्दोलनजीवी की संज्ञा दी है।

प्रदर्शन करते पहलवान (साभार-साक्षी मलिक ट्वीटर)

बरखा त्रेहन: भारतीय जनता पार्टी के सांसद बृजभूषण सिंह के विरुद्ध अब महिला पहलवानों का विरोध तो और तेज हुआ ही है, साथ ही उसमें वही चेहरे कूद आए हैं, जो सीएए से लेकर किसान आन्दोलन में थे। एक बार फिर भारत सरकार को अपमानित किया जा रहा है, जैसे पहले के इन आन्दोलनों में किया गया था। न खाता न बही, जो आरोप लगाए वही सही, वाला दृष्टिकोण इस बार भी चल रहा है। अब मेडल बहाने के लिए माँ गंगा का भी प्रयोग करने का कुप्रयास किया गया। मेडल्स को माँ गंगा में बहाने का नाटक रचा गया। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में मिले मेडल तो बहा देने की बात हुए, परन्तु इन मेडल्स के आधार पर जो नौकरी एवं सुविधाएं प्राप्त हुई हैं, क्या उन्हें भी त्यागने की बात किसी ने की?

पहले भी पुरस्तकार वापसी अभियान चला था

जैसे जब इस सरकार के विरुद्ध कथित लेखकों ने “पुरस्कार वापसी अभियान” चलाया था, तो घोषणा करने वाले कितने लेखकों ने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाया था और उससे भी महत्वपूर्ण कि कितने ऐसे लोग थे जिन्होनें वह रकम भी लौटाई थी जो साहित्य अकादमी से प्राप्त हुई थी? आखिर जो यह बलिदान की भावना है इन आन्दोलनकारियों में, वह सुविधाएं लौटाने पर गायब क्यों हो जाती है? और इन आन्दोलनों से एक और बात खड़ी होती है कि क्या सरकार का विरोध कर रहे लोगों के दिल में उस संविधान का आदर नगण्य है, जिसकी बात वह लगातार करते हैं?

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