तस्वीर का इस्तेमाल सिर्फ प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है। (फाइल)
तस्वीर साभार : टाइम्स नाउ ब्यूरो
एशियाई खेलों में एथलीट अनु रानी सत्र के अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के साथ महिला भाला फेंक स्पर्धा में शीर्ष पर रहीं। मंगलवार (तीन अक्टूबर, 2023) को चीन के हांगझोउ में पूरे सेशन में खराब फॉर्म से जूझने वाली अनु चौथे प्रयास में 62.92 मीटर के सत्र की टॉप परफॉर्मेंस के साथ एशियाई खेलों की भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बन गईं।
अनु ने मीडिया को बताया, ‘‘मैं पूरे साल कोशिश कर रही थी लेकिन अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे पा रही थी। मैं उदास और दबाव महसूस कर रही थी क्योंकि सरकार ने मुझे ट्रेनिंग के लिए विदेश भेजने में बहुत पैसा खर्च किया। यह सत्र की मेरी आखिरी प्रतियोगिता थी और मैंने हार नहीं मानी। इसलिए मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ देने की ठान ली थी।’’
उन्होंने यह खुलासा किया कि कई प्रतियोगिताओं में खराब प्रदर्शन के बाद वह खेल छोड़ने की कगार पर थीं लेकिन उन्होंने खुद को एक मौका देने के लिए ऐसा नहीं करने का फैसला किया। बकौल रानी, ‘‘परिवार और देश की अपेक्षाएं थीं। मैं अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे पा रही थी। पूरा सूत्र अच्छा नहीं रहा। बीच में मैं 54 मीटर का थ्रो भी कर रही थी और मैंने सोचा कि अगर मैं इतना बुरा कर रही हूं, तो मैं खेल छोड़ दूंगी। लेकिन मैंने खुद से कहा कि मैं इतनी जल्दी हार नहीं मानूंगी और अंत तक लड़ूंगी।''
वैसे, अनु का एशियाई खेलों का यह दूसरा पदक है। उन्होंने 2014 में कांस्य पदक जीता था। हालांकि, गोल्ड हासिल करनेवाली अनु की असल और अनकही कहानी कुछ और ही है। फिलहा 31 बरस की रानी मूल रूप से यूपी के मेरठ से सटे सरधना के बहादुरपुर गांव की रहने वाली हैं। उनकी जीत के बाद भले ही गांव और परिवार में अब खुशी की लहर दौड़ गई हो, मगर कभी उनके भाला फेंक के शौक से पिता खुश नहीं रहते थे।
किसान परिवार से नाता रखने वाली अनु बचपन से ही इसमें अपना करियर बनाना चाहती थी, पर पिता इसके लिए कभी राजी नहीं थे। वैसे, उन्होंने पिता को मनाना जारी रखा था। देश के लिए गोल्ड लाने वाली बिटिया के पिता अमरपाल सिंह ने इस बाबत समाचार एजेंसी ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘हम बहुत छोटे से किसान है। मेरे दो बेटे और तीन बेटियां हैं। इनमें अनु सबसे छोटी है। सबसे बड़ा बेटा उपेन्द्र है। छोटा बेटा जितेन्द्र है। बेटी रीतू, नीतू और अनु रानी हैं।’’
यह पूछे जाने पर कि बेटी का भाले से नाता कब जुड़ा, अमरपाल ने बताया, ‘‘बड़े भाई उपेंद्र और अपने चचेरे भाइयों को देखकर अनु का इस तरफ झुकाव हुआ। उस समय वह नौंवी कक्षा में पढ़ती थी। बड़ा भाई उपेन्द्र उस समय यूनिवर्सिटी स्तर पर दौड़ और भाला फेंक में हिस्सा लेता था। उन्हें अपनी बहन के थ्रो में कुछ ख़ास लगा। उन्हें लगा कि अनु भी भाला फेंक सकती है।’’
उन्होंने आगे कहा कि बेटे ने घर आकर मुझे इसके बारे में बताया तो ‘‘मैंने इनकार कर दिया। कहा- बेटी है, अकेली कहां जाएगी? इसके खेल और खुराक का खर्चा कैसे उठाएंगे? क्योंकि हम बहुत छोटे किसान हैं। गांव में हमारे पास थोड़ी बहुत ही जमीन है। उस समय उपेंद्र 1500, 800, 400, पांच हज़ार मीटर की दौड़ और भाला फेंक का खिलाड़ी था।’’
अमरपाल के अनुसार, ‘‘मेरे मना करने के बाद भी मेरा बेटा उपेन्द्र अपनी बहन को चोरी-छिपे सुबह-सुबह अपने साथ खेतों में ले जाता और गन्ने का भाला बनाकर उससे अभ्यास कराता। अनु के पास अच्छे जूते नहीं थे, तो वह भाई के जूते पहनकर दौड़ती। दोनों के पैरों का साइज एक था। यह अनु की खेल प्रतिभा है कि उसने आज न सिर्फ परिवार और अपने गांव का बल्कि देश का नाम पूरी दुनिया में कर दिया।’’
पिता ने आगे बताया, बाद में स्कूल के शिक्षकों ने भी बिटिया की प्रतिभा का जिक्र करते हुए उसकी सिफारिश की, जिसके बाद उन्हें बेटी की बात माननी पड़ी। बकौल अमरपाल सिंह, ‘‘मुझे गांव के लोगों से जब बेटी की आज की कामयाबी का पता चला तो मैं बता नहीं सकता कि कि मुझे कितनी खुशी हुई। इसी के साथ अपनी बेटी की प्रतिभा पर गर्व हुआ।’’
अमरपाल के मुताबिक, ‘‘मुझे तो पहले यह डर था कि बेटी को खेलने के लिए दूर-दूर जाना पड़ेगा। लेकिन देखिए अब वही बेटी अपने खेल की बदौलत इतना दूर निकल आई कि चीन के हांगझोउ शहर में खेले जा रहे एशियाई खेलों में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीत लिया।’’