...तो भ्रूण तक ऐसे पहुंचती है जानकारी, जानिए क्या होता है Sperm का रोल

चूहों का इस्तेमाल करते हुए एपिजेनेटिसिस्ट एरियन लिसमर और उनके साथियों ने यह दिखाने में सक्षम रहे कि शुक्राणु में हिस्टोन अणुओं (Histone Molecules) को बदलकर फोलेट की कमी वाले आहार (Folate-deficient Diet) के प्रभाव को बढ़ाया जा सकता है। सरल भाषा में समझें तो हिस्टोन बेसिक प्रोटीन्स होते हैं, जिनके इर्द-गिर्द डीएनए घूमते हैं।

तस्वीर का इस्तेमाल सिर्फ प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है।

आहार, वजन और तनाव सरीखे कई पर्यावरण से जुड़े प्रभावों की 'यादें' पिता से उनके बच्चों तक पहुंच सकती हैं। यह खुलासा साल 2021 में मैमल्स (Mammals) यानी कि स्तनधारियों में हुई एक स्टडी (शोध) के जरिए हुआ है, जिसका एपिजेनेटिक्स (Epigenetics) से जुड़ाव है।

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मैक्गिल यूनिवर्सिटी (मोंटरियाल में कनाडा की टॉप रैंकिंग्स में शुमार मेडिकल डॉक्टोरल विवि) की एपिजेनेटिसिस्ट साराह किमिंस के हवाले से 'साइंस अलर्ट' की रिपोर्ट में बताया गया कि इस स्टडी के साथ बड़ी सफलता यह रही कि इसने एक गैर-डीएनए-आधारित माध्यम की पहचान की है, जिसकी मदद से स्पर्म (शुक्राणु) एक पिता के वातावरण (आहार) को याद रखते हैं और उस जानकारी को भ्रूण तक पहुंचाते हैं।

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