सोशल मीडिया पर तुरंत फेमस होने की चाह मेंटल हेल्थ पर डाल रहा असर, जानें इस सिंड्रोम के बारे में

सोशल मीडिया के बढ़ते चलन से मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। यहां जानें 'फैंटम पॉकेट वाइब्रेशन सिंड्रोम' के बारे में।

सोशल मीडिया पर तुरंत फेमस होने की चाह मेंटल हेल्थ पर डाल रहा असर

सोशल मीडिया पर तुरंत फेमस होने की चाह मेंटल हेल्थ पर डाल रहा असर

तस्वीर साभार : IANS

29 अक्टूबर: देश में सेल्फी का क्रेज और शॉर्ट-फॉर्म वीडियो का प्रचलन बढ़ता जा रहा है, जिसे लेकर स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इसके प्रति आगाह किया है। उनका कहना है कि इससे मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, जैसे 'फैंटम पॉकेट वाइब्रेशन सिंड्रोम' पैदा हो सकती हैं। फैंटम पॉकेट वाइब्रेशन सिंड्रोम तब होता है जब कोई व्यक्ति अपनी जेब में फोन की वाइब्रेशन महसूस करता है, जबकि ऐसा नहीं है। इस सिंड्रोम का मुकाबला करने का सबसे अच्छा तरीका है कि मोबाइल फोन के उपयोग को कम करें और कभी-कभी फोन के वाइब्रेशन को बंद कर दें।

नई दिल्ली स्थित तुलसी हेल्थकेयर के वरिष्ठ सलाहकार, मनोचिकित्सक गौरव गुप्ता ने आईएएनएस को बताया कि मोबाइल फोन और सोशल मीडिया के अत्यधिक प्रयोग से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। इससे अवसाद, चिंता, अकेलापन और आत्मघाती विचार भी आ सकते हैं।

सोशल मीडिया कभी-कभी किसी के बारे में गलत व अपर्याप्त जानकारी देकर नकारात्मकता को भी बढ़ावा देने का कारण होता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि सेल्फी का क्रेज वर्तमान पीढ़ी को आगामी पीढ़ी से अलग-थलग कर सकता है।

व्यवहार विशेषज्ञों ने सेल्फी को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है। पहली, जो दोस्तों के साथ ली गई हैं, दूसरी, जो कुछ गतिविधियों या घटनाओं के दौरान ली गई हैं और तीसरी, जो शारीरिक बनावट पर ध्यान केंद्रित करती है।

'साइकोलॉजी ऑफ पॉपुलर मीडिया कल्चर' नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि जो लोग बहुत अधिक सेल्फी पोस्ट करते हैं, वे अपने आत्म-सम्मान को लेकर बहुत संवेदनशील होते हैं।

विशेषज्ञ कहते हैं कि हमें बच्चों के डिजिटल इंटरफेस की प्रकृति और तीव्रता के बारे में चिंतित होना चाहिए।

फोर्टिस हेल्थकेयर के मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंसेज के निदेशक समीर पारिख ने आईएएनएस को बताया कि सेल्फी के प्रति अत्यधिक क्रेज से व्यक्ति जीवन में बहुत महत्वपूर्ण चीजों को खो देता है। इससे व्यक्ति की मौलिकता खत्म हो जाती है।

उन्होंने कहा कि इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि आपके पास जितना अधिक डिजिटल इंटरफेस होगा, उतना ही शारीरिक गतिविधि, सामाजिक जुड़ाव, शिक्षा, खेल और रचनात्मकता से दूर जाने की संभावना होगी।

पारिख ने कहा कि अगर आप घर के अंदर अधिक मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं तो यह आपकी एकाग्रता और आपके सामाजिक जीवन को प्रभावित करेगा।

विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि माता-पिता को बच्चों को संतुलित जीवन जीने और शारीरिक गतिविधियों और खेलों में शामिल होने और दोस्तों से मिलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

कोविड की शुरुआत के बाद से और उससे भी पहले भारत में मोबाइल फोन उपयोगकर्ताओं की संख्या में भारी वृद्धि हुई है, खासकर इसके उपभोक्ताओं में बच्चों की संख्या में भी हर साल वृद्धि हो रही है।

माता-पिता के लिए इस समस्या से बाहर निकलने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि वह अपने बच्चों को इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के इस्तेमाल को सीमित करें। बच्चों या नवजात शिशुओं को गेम खेलने या वीडियो देखने के लिए फोन देने से बचें। देर रात मोबाइल फोन का इस्तेमाल अनिद्रा का कारण बन सकता है।

देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | टेक एंड गैजेट्स (tech-gadgets News) की खबरों के लिए जुड़े रहे Timesnowhindi.com से | आज की ताजा खबरों (Latest Hindi News) के लिए Subscribe करें टाइम्स नाउ नवभारत YouTube चैनल

End of Article

© 2024 Bennett, Coleman & Company Limited