अंतरिक्ष में बच्चे पैदा करना क्यों चाहता है चीन, बंदरों के बाद इंसानों पर होगा एक्सपेरिमेंट?

चीन अंतरिक्ष में बच्चे पैदा करने का प्लान बना रहा है। चीन की स्पेस एजेंसी China National Space Administration ने अंतरिक्ष में जीरो ग्रैविटी में रिप्रोडक्शन यानी प्रजनन से जुड़ी जानकारी पता लगाने के बंदरों को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी की है। क्या बंदरों के बाद अगला एक्सपेरिमेंट इंसानों पर होगा?

चीन अब अंतरिक्ष में बच्चे पैदा करने का प्लान क्यों बना रहा है। चीन के बंदर अंतरिक्ष में जाकर क्या गुल खिलाने वाले हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी चीन की है। वहां 140 करोड़ से ज्यादा लोग हैं। कहा जा रहा है कि 2025 से चीन की आबादी घटनी लगेगी जिससे चीन को चिंता भी है। लेकिन इस चिंता को छोड़िए, चीन कुछ ऐसा कर रहा है, जिसके बारे में सोचना भी मुश्किल है। चीन अंतरिक्ष में बच्चे पैदा करने का प्लान बना रहा है। चीन की स्पेस एजेंसी China National Space Administration ने अंतरिक्ष में जीरो ग्रैविटी में रिप्रोडक्शन यानी प्रजनन से जुड़ी जानकारी पता लगाने के बंदरों को अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी की है। सवाल ये है कि क्या बंदरों के बाद अगला एक्सपेरिमेंट इंसानों पर होगा और Space Born बच्चे कैसे होंगे। वो धरती पर पैदा होने वाले बच्चों से कितना अलग होंगे और क्या वो स्पेस में आसानी से रह पाएंगे, और धरती पर लौटकर जीवित रह पाएंगे।

दुनिया के कई देशों में Space यानी अंतरिक्ष में इंसानों को बसाने की तैयारियां चल रही हैं। इसके लिए अलग अलग एक्सपेरिमेंट चल रहे हैं। अंतरिक्ष में इंसान कैसे रह पाएंगे, क्या क्या चैलेंज आएंगे। दुनिया भर की स्पेस एजेंसियां इसी का पता लगाने की कोशिश कर रही हैं। ऐसी ही एक कोशिश चाइनीज स्पेस एजेंसी भी कर रही है। अंतरिक्ष में इंसानी बस्ती बसाने से पहले ये रिसर्च की जा रही है कि क्या अंतरिक्ष में प्रजनन हो सकता है। इसके लिए चीन ने एक मिशन प्लान किया है। जिसके तहत अंतरिक्ष में Life Science पर एक्सपेरिमेंट किए जाएंगे।

  • हाल ही में चीन का स्पेस स्टेशन तियांगोंग<Tiangong> बनकर तैयार हुआ है।
  • इसी स्पेस स्टेशन में प्रजनन से जुड़े एक्सपेरिमेंट किए जाएंगे।
  • स्पेस स्टेशन में वेंटियन<Wentian> नाम से एक बड़ा कैप्सूल तैयार किया है।
  • स्पेस में प्रजनन की संभावना जानने के लिए बंदरों को भेजा जाएगा।
  • ये बंदर तियांगोंग स्पेस स्टेशन के वेंटियन बायोलॉजिकल कैप्सूल में रहेंगे।
  • यहां बंदरों को प्रजनन के लिए प्रेरित किया जाएगा, उनकी देखभाल की जाएगी।

चीन के स्पेस स्टेशन में 6 एस्ट्रोनॉट्स के रुकने की जगह है। जब बंदर स्पेस स्टेशन जाएंगे तो उनको अलग कैप्सूल में रखा जाएगा। ऐसे में बड़ी चुनौती बंदरों को स्वस्थ रखने की होगी।

  • एस्ट्रोनॉट्स पर बंदरों के देखभाल की जिम्मेदारी होगी।
  • बंदरों को खाना खिलाना और उनकी गंदगी को साफ करना होगा।
  • बंदरों को शांत और खुश रखना एस्ट्रोनॉट्स के लिए चुनौती होगा।
  • स्पेस तक का सफर करने के बाद बंदरों की सेहत की मॉनिटरिंग करनी होगी।
  • जीरो ग्रैविटी में बंदरों के शरीर में क्या बदलाव आए ये टेस्ट होंगे।
  • कैप्सूल के अंदर नर और मादा बंदर लड़ाई ना करें ये देखना होगा।
  • कैप्सूल के अंदर बंदरों का व्यवहार बदल सकता है, वो अकेलापन महसूस कर सकते हैं।

रिप्रोडक्शन के लिए उचित माहौल तैयार करना होगा और ये भी देखना होगा कि बंदर उस समय खुश रहें। चीन ने अंतरिक्ष में प्रजनन की संभावना तलाश करने के लिए बंदरों को चुनने के पीछे क्या तर्क दिए हैं। उसके मुताबिक बंदर इंसानों के पूर्वज हैं।

  • विज्ञान के मुताबिक बंदर को इंसानों का सबसे करीबी जीव माना जाता है।
  • यानी बंदर और इंसानों की शारीरिक संरचना एक दूसरे से काफी मिलती है।
  • बंदरों और इंसानों की प्रजनन प्रक्रिया में भी कई समानताएं हैं।
  • इसीलिए Life Saving दवाओं को अक्सर Human Trial से पहले बंदरों पर आजमाया जाता है।

दरअसल अंतरिक्ष में रीप्रोडक्शन की पॉसिबिलीटी तलाश करने की शुरूआत 90 के दशक से जारी है। और पहले हो चुके प्रयोगों को देखने के बाद ही चीन ने बंदरों को स्पेस भेजने का फैसला किया और शायद इसके बाद अगला नंबर इंसानों का हो। आपको 90 के दशक में हुए एक महत्वपूर्ण प्रयोग के बारे में बताते हैं।

  • 1994 में अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA ने एक जेलीफिश को अंतरिक्ष में भेजा था।
  • जेलीफिश समुद्री जीव होता है और वो इंसानों की ही तरह ग्रैविटी पर रिस्पॉन्स करता है।
  • नासा का मकसद था कि स्पेस में जेलीफिश का प्रजनन कराया जाए और पृथ्वी पर लाया जाए।
  • स्पेस में जेलीफिश की ब्रीडिंग कराई गई और बेबी का नाम Moon जेलीफिश रखा गया।
  • Moon जेलीफिश जीरो ग्रैविटी में भी जीवित रहा।
  • जेलीफिश ने खुद को स्पेस के मुताबिक एडॉप्ट किया।
  • पृथ्वी पर वापस आने पर जेलीफिश को काफी परेशानी हुई।
  • पृथ्वी की ग्रैविटी में मूवमेंट करने में दिक्कत आ रही थी।
  • लेकिन कुछ समय बाद जेलीफिश ने खुद को एडॉप्ट कर लिया।

जेलीफिश काफी हल्के होते हैं, लेकिन उन पर भी ग्रैविटी का असर पड़ता है। जेलीफिश के अंदर इंसानों की ही तरह Gaviceptors लगे होते हैं। जिस से वो पृथ्वी की ग्रैविटी के हिसाब से रहते हैं, मूवमेंट करते हैं। जिस तरह से इंसानों के कानों में ग्रैविटी बैलेंस के लिए लिक्विड होती है।

इसी तरह से 90 के दशक में कई जानवरों को स्पेस में भेजा गया और उनकी ब्रीडिंग कराई गई जैसे मछली, मेंढक और चूहे, इन सभी जानवरों के बच्चों ने खुद को स्पेस के हिसाब से एडॉप्ट किया और जब पृथ्वी पर वापस लाए गए तो पृथ्वी के माहौल में भी कुछ दिनों में एडॉप्ट कर लिया। हालांकि इनमें से ज्यादातर जानवर कुछ ही दिनों में मर गए थे।

यानी अब तक कई जानवरों पर स्पेस में प्रयोग हो चुके हैं। अब बंदरों का नंबर है, जिनको चीन स्पेस में भेज रहा है. बंदरों ने भी जेलीफिश और चूहों की तरह रिस्पॉन्स मिला तो अगला नंबर इंसानों का हो सकता है। लेकिन ऐसा होने पर पहले बंदरों पर प्रयोग के 2 प्वाइंट समझने होंगे

पहला प्वाइंट

जीरो ग्रैविटी यानी स्पेस में पैदा होने वाले बंदर खुद को स्पेस के माहौल में ढाल लें

दूसरा प्वाइंट

पृथ्वी पर लौटकर बंदरों के बच्चे खुद को यहां की ग्रैविटी के हिसाब से एडॉप्ट कर लें

अगर ऐसा होता है तो स्पेस में रीप्रोडक्शन के एक्सपेरिमेंट इंसानों पर भी होने का रास्ता खुल जाएगा। और शायद एक ऐसा इंसान पैदा कर लिया जाए जिसे जीरो ग्राविटी और पृथ्वी की ग्रैविटी दोनों ही माहौल में रहने में कोई दिक्कत नहीं होगी। अंतरिक्ष में रीप्रोडक्शन के अलावा भी कई और प्रयोग किए जा रहे हैं। उनके बारे में भी आपको जानना चाहिए। क्योंकि इन प्रयोगों के बारे में जानकर आप बहुत हैरान रह जाएंगे।

  • अंतरिक्ष में Asteroid Mining पर भी काम चल रहा है।
  • Asteroid अंतरिक्ष में घूमने वाले उल्का पिंड होते हैं,जो पत्थर, धूल और मिनरल्स से बने होते हैं। यानी इन Asteroid की माइनिंग करने की भी कोशिश की जा रही है क्योंकि
  • सालाना 900 Asteroid पृथ्वी के पास से होकर गुजरते हैं
  • और माइनिंग के प्रयोगों के पीछे कारण ये बताया जा रहा है कि Asteroid के खनन से लाखों टन सोना और प्लैटिनम मिल सकता है
  • यानी एक उल्का पिंड में अगर सोने का भंडार मिल गया तो मालामाल हो जाएंगे इसलिए इस तरह का प्रयोग चल रहा है कि उल्का पिंडों की भी माइनिंग की जाए।
  • अंतरिक्ष में 16-साइकी नाम का एक Asteroid है जहां सबसे ज्यादा सोना और प्लैटिनम है
  • कहा जाता है कि इस Asteroid में मौजूद सोना धरती के सभी देशों की अर्थव्यवस्था से ज्यादा है
  • हालांकि Asteroid खनन बहुत महंगी और लंबी प्रक्रिया होती है क्योंकि उल्का पिंडों की स्पीड बहुत तेज होती है और खनन के लिए ऐसा प्रयोग करना होगा जिससे उल्का पिंडों की स्पीड के हिसाब से माइनिंग हो सके।
  • एक्सपर्ट्स के मुताबिक Asteroid से अगर 60 ग्राम सामान लाना होगा तो इसमें लगभग 1 अरब डॉलर का खर्च आएगा।

वैसे अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA इस काम में जुट गई है।

Asteroid खनन के प्रयोग के अलावा आपको ये तो पता ही होगा कि अंतरिक्ष में टूरिज्म भी शुरू हो गया है। पिछले साल सितंबर में एलन मस्क की कंपनी Space-X ने 4 आम लोगों को अंतरिक्ष भेजा था। ये सभी नॉन प्रोफेशनल अंतरिक्ष यात्री हैं। इन सभी ने 4 दिन अंतरिक्ष में बिताए थे। एलन मस्क के अलावा अरबपति रिचर्ड ब्रैसनन की कंपनी Virgin Galactic और जेफ बेजोस की कंपनी Blue Origin भी स्पेस टूरिज्म के फील्ड में है औऱ लोगों को अंतरिक्ष की सैर करवा रही है।

इसके अलावा अंतरिक्ष में कॉलोनी बनाने की योजना पर भी काम चल रहा है। NASA ने चांद पर कॉलोनी बनाने की घोषणा की है. अंतरिक्ष यात्री चांद पर बनी कॉलोनी में ही रहेंगे और यहां पर खेती के साथ दूसरे प्रयोग किए जाएंगे।

पूरी दुनिया मान रही हैं कि आने वाला समय स्पेस टेक्नोलॉजी का है। और जिस देश का अंतरिक्ष में दबदबा होगा दुनिया पर उसका प्रभाव उतना ज्यादा होगा। इसलिए अब Space Force भी तैयार की जा रही है। यानी आर्मी, एयरफोर्स और नेवी के अलावा अब स्पेस फोर्स की भी जरूरत है।

  • अमेरिका, रूस, फ्रांस, ईरान, चीन के पास Space Force है
  • Space Force का काम अंतरिक्ष मिशन के दौरान मदद करना है
  • अंतरिक्ष मिशन के दौरान आने वाले खतरों को न्यूट्रलाइज करते हैं

भारत के पास अभी अपनी कोई Space Force नहीं है लेकिन भारत में डिफेंस स्पेस एजेंसी है, जिस में तीनों सेनाओं के जवान और अधिकारी शामिल होते हैं। इसका हेडक्वार्टर बैंगलोर में है। इसका मुख्य काम Space वॉरफेयर और सेटेलाइट इंटेलिजेंस को ऑपरेट करना है। मार्च 2019 में भारत ने इसी के तहत एंटी सेटेलाइट मिसाइल का सफल परीक्षण भी किया था।

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