Houseboats In India: केरल या कश्मीर- कहां सबसे पहले चलीं हाउसबोट्स, इतिहास से जानें इनका क्या था काम और क्यों अंग्रेजों के लिए थीं बेहद खास

Explained History of Houseboats: क्या आपने कभी सोचा है कि ये हाउसबोट का कॉन्सेप्ट आया कैसे। केरल में पहले हाउसबोट चली कि कश्मीर में। क्या है भारत में हाउसबोट का इतिहास। इन सारे सवालों के जवाब आपके इस स्पेशल स्टोरी में मिल जाएंगे।

Explained History of Houseboats In India (भारत में कैसे बने हाउसबोट्स)

History Of Houseboats in India: भारत विविधताओं का देश है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक आपको एक से बढ़कर एक कला, संस्कृति और रीति-रिवाज आपको देखने को मिलेंगे। भारत में आप जहां हिमालय की बर्फीली चोटियों का आनंद ले सकते हैं तो वहीं तमिलनाडु और केरल के झील और समुद्र का भी आनंद ले सकते हैं। क्या आपको पता है कि कश्मीर और कन्याकुमारी के टूरिज्म में एक समानता क्या है। इन दोनों जगहों पर पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं यहां के हाउसबोट। कश्मीर और केरल की सैर पर जाने वालों का सपना होता है कि वह हाउसबोट का अनुभव जरूर करें। ज्यादातर लोग करते भी हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये हाउसबोट का कॉन्सेप्ट आया कैसे। केरल में पहले हाउसबोट चली कि कश्मीर में। क्या है भारत में हाउसबोट का इतिहास। इन सारे सवालों के जवाब आपके इस स्पेशल स्टोरी में मिल जाएंगे।

हाउसबोट- इसका शाब्दिक अर्थ होता है बोट पर बना हाउस। मतलब नाव पर बने घर। हाउसबोट बड़े और धीमे चलने वाले विशेष तरह के नाव होते हैं। इसमें किसी फाइव स्टार होटल की तरह कमरे बने होते हैं। इसमें टूरिस्ट रात गुजारते हैं। भारत में मॉडर्न हाउसबोट का इतिहास करीब 200 साल पुराना है। अगर आप ये सोच रहे हैं कि सबसे पहले हाउसबोट का निर्माण कश्मीर में हुआ था तो आप गलत हैं। दरअसल केरल में सबसे पहले से हाउसबोट चले आ रहे हैं।

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केरल के हाउसबोट

केरल के हाउसबोट वहां की पारंपरिक केट्टा वल्लम का नया रूप है। मलयालम भाषा में केट्टु का अर्थ 'तैरता ढांचा' और 'वल्लम' का अर्थ बोट होता है। इंटरनेट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक केरल और उसके आसपास के इलाकों में हाउसबोट का चलन करीब 3,000 ईसा पूर्व शुरू हुआ था। पहले इन केट्टा वल्लम का इस्तेमाल मुख्य रूप से माल परिवहन, विशेष रूप से मसालों और चावल के ट्रांसपोर्ट के लिए होता था। पारंपरिक केट्टा वल्लम औसतन लगभग 100 फीट लंबे होते थे जो दूरदराज के गांवों को जोड़ने वाले बैकवाटर के जरिए लोगों से माल इकट्ठा कर व्यापारियों तक पहुंचाते थे। केट्टा वल्लम लगभग 30 टन माल आसानी से ले जा सकता था। तब ज्यादातर हाउसबोट कोचीन बंदरगाह और कुट्टनाड जो कि अपने स्वादिष्ट समुद्री व्यंजनों के लिए प्रसिद्ध है, के बीच चलती थी।

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