Fastag vs GNSS: क्या अब खत्म हो जाएगी Fastag की जरूरत, कैसे काम करेगा सैटेलाइट वाला टोल सिस्टम

Fastag vs GNSS: इस सिस्टम का उद्देश्य टोल कलेक्शन की एफिशिएंसी को बढ़ाना और टोल प्लाजा पर भीड़भाड़ को कम करना है। फास्टैग आरएफआईडी तकनीक का उपयोग करता है जिसमें विंडशील्ड स्टिकर होता है जिसे टोल बूथ स्कैनर ऑटोमैटिक रूप से टोल काटने के लिए रीड हैं।

फास्टटैग के साथ अब GNSS चलेगा

Fastag vs GNSS: सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय चुनिंदा नेशनल हाइवे पर ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) आधारित टोल कलेक्शन सिस्टम लागू करने की तैयारी कर रहा है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने राज्यसभा में एक लिखित उत्तर में इस बारे में बताया। उन्होंने बताया कि यह टोल केलक्शन सिस्टम मौजूदा फास्टैग सिस्टम के साथ-साथ करेगा। कर्नाटक में NH-275 के बेंगलुरु-मैसूर सेक्शन और हरियाणा में NH-709 के पानीपत-हिसार सेक्शन पर पायलट स्टडीज पहले किए जा चुके हैं।

टोल प्लाजा पर भीड़ होगी कम

इस सिस्टम का उद्देश्य टोल कलेक्शन की एफिशिएंसी को बढ़ाना और टोल प्लाजा पर भीड़भाड़ को कम करना है। 25 जून, 2024 को GNSS-आधारित टोल पर हितधारकों से सलाह करने के लिए एक इंटरनेशनल वर्कशॉप आयोजित की गई थी। इसके बाद 7 जून, 2024 को ग्लोबल एक्सप्रेशन ऑफ इंटरेस्ट (EOI) जारी की गई। इसमें व्यापक औद्योगिक भागीदारी को आमंत्रित किया गया। ईओआई प्रस्तुत करने की अंतिम तिथि 22 जुलाई, 2024 थी।

फास्टैग vs GNSS आधारित टोलिंग

फास्टैग आरएफआईडी तकनीक का उपयोग करता है जिसमें विंडशील्ड स्टिकर होता है जिसे टोल बूथ स्कैनर ऑटोमैटिक रूप से टोल काटने के लिए रीड हैं। कैशलेन की तुलना में तेज होने के बावजूद फास्टैग यूजर्स अभी भी टोल बूथ पर रुकना पड़ता है, जिससे पीक ऑवर्स के दौरान कतारें लग जाती हैं। यूजर्स को आसानी से टोल पेमेंट के लिए प्रीपेड बैलेंस बनाए रखना चाहिए।
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