देश के नाम "इंडिया" और "भारत" को लेकर छिड़े सियासी संग्राम के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने अखंड भारत को लेकर कहा है कि जो लोग भारत से अलग हुए, उन्हें भी आज महसूस होता है कि उन्होंने गलती कर दी। भारत होना यानी भारत के स्वभाव को स्वीकारना है। दरअसल, महाराष्ट्र के नागपुर में बुधवार को उनसे पूछा गया- देश को अखंड भारत के रूप में कब तक देखने की उम्मीद रखते हैं? वह दो टूक बोले- कब तक तो नहीं बता सकते...ग्रह ज्योतिष देखना पड़ेगा। मैं जानवरों का डॉक्टर हूं। लेकिन यह बताता हूं कि आप उसे अगर करने जाएंगे तब आपके बूढ़े होने से पहले दिखेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि परिस्थितियां ऐसी करवट ले रही हैं। बकौल भागवत, "जो भारत से अलग हुए, उन्हें लगता है गलती हो गई। वे सोचते हैं कि हमें फिर से भारत होना चाहिए। लेकिन वह मानते हैं कि भारत होने का मतलब है नक्शे की रेखाएं पोंछ डालना। केवल उससे नहीं होगा। भारत होना यानी भारत के स्वभाव को स्वीकार करना होगा। वह स्वभाव मंजूर नहीं था, इसलिए विखंडन हुआ। वह स्वभाव आ जाएगा तब कुछ नहीं बदलना पड़ेगा। सब भारत एक हो जाएगा।"