कहते हैं न एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह कसतीं. ये कहावत Atique Ahmed पर एकदम फिट बैठती है. बात 1980 के दशक की है जब उत्तर प्रदेश में माफियाओं का बोलबाला था. उस वक्त पूर्वांचल में गैंगस्टर चांद बाबा का खौफ हुआ करता था. वो अपने विरोधियों पर देसी बम फेंकने के लिए भी कुख्यात था. अतीक अहमद भी चांद बाबा के गिरोह में ही था. बाद में अतीक भी गिरोह के नेतृत्व करने की महत्वाकांक्षा पालने लगा.जिस चकिया से शौक-ए-इलाही उर्फ चांद बाबा अपना साम्राज्य चला रहा था उसी गैंगस्टर चांद बाबा की कुर्सी पर अतीक की नज़र थी. अतीक के चुनाव जीतने के कुछ महीने बाद ही फिल्मी स्टाइल में दिनदाहाड़े गोली मारकर Chand Baba की हत्या कर दी गई.