Ajab Gajab : आर्किटेक्ट कपल ने बनाया भांग के पौधे से घर, खूबसूरती देख आंखों पर नहीं होगा यकीन
भांग के पौधे से बने इस घर को बनाने में करीब दो साल का समय लगा है। साल 2021 में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने 800 वर्ग फुट में फैले इस घर का उद्घाटन किया था। इस घर का नाम हेंप हाउस रखा गया है।
हेम्प हाउस, उत्तराखंड (Image Credit - Social Media)
- कपल ने बनाया भांग के पौधे से घर
- बनने में लगा था दो साल का समय
- हेंप हाउस रखा गया है नाम
Hemp House In Uttarakhand: इन दिनों लोग अपने घरों सुंदर व सुरक्षित बनाने के लिए क्या नहीं कर रहे हैं। ऐसे में एक आर्टिटेक्ट कपल ने कमाल कर दिया है। इस कपल ने भांग के पौधे से घर बना दिया है। जी हां, सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लग रहा हो। लेकिन ये सच है। उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के यमकेश्वर ब्लॉक में रहने वाले आर्किटेक्ट नम्रता कंडवाल और गौरव दीक्षित ने हेम्पक्रीट (Hempcrete) से एक सुंदर सा घर बनाया है। उनका कहना है कि भारत में इस तरह का बना हुआ यह पहला घर है।
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वैसे हेम्पक्रीट के नाम से काफी लोग वाकिफ नहीं होंगे तो पहले इसी के बारे में जान लेते हैं। हेम्पक्रीट कुछ और नहीं बल्कि भांग के पौधे, लकड़ी, मिट्टी और पानी का मिश्रण है। इसमें कुछ खनिज भी मिलाए जाते हैं। इस तरह के घर ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों में काफी प्रचलित है। इस घर को बनाने में करीब 30 लाख रुपए का खर्च आया था, जिसे बनकर तैयार होने में दो साल का समय लग गया था। इस घर का उद्घाटन साल 2021 में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने किया था, जो 800 वर्ग फीट में फैला हुआ है।
अब बन चुका है होमस्टे
इस घर की छत पर 3 किलोवाट का सोलर पैनल और 5000 लीटर ग्राउंड वाटर स्टोरेज की सुविधा भी रखी है। वर्तमान में इस घर को 'होम स्टे' का रूप दे दिया गया है, ताकि यहां आने वाले पर्यटक भी इस घर का आनंद ले सकें। इस घर को मनमोहक रूप देने के लिए पर्यावरण-अनुकूल (Eco Friendly) चीजों से सजाया गया है। इस घर को बनाने में कपल ने 3 टन भांग का इस्तेमाल किया है। कपल का कहना है कि भांग के बने हुए घर नमी को सोख लेते हैं, दीवारों पर फफूंदी भी पड़ते। और तो और कार्बन अब्सॉर्ब कर घर की हवा को शुद्ध बना देता है।
एलोरा की गुफाओं में भी इस्तेमाल किए गए हैं भांग के पौधे
अगर आप कभी महाराष्ट्र के 'एलोरा की गुफा' घूमने जाए तो वहां आपको 1500 साल पुरानी कई कलाकृति आज भी वैसी की वैसी ही हैं। इसका कारण है कि इसे बनाने में भांग के पौधे का इस्तेमाल किया गया है। यहा कारण है कि डेढ हजार साल पुरानी ये गुफाओं की श्रृंखला आज भी सुरक्षित है। इसमें मिट्टी, चूने के प्लास्टर और भांग के पौधों का मिश्रण इस्तेमाल किया गया है। यही कारण है कि एलोरा की गुफाओं में कीट-पतंगे भी नहीं पाए जाते।
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देश की धार्मिक राजधानी काशी में जन्म लिया और घाटों पर खेल-कूदकर बड़ा हुआ। साल 2019 में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में...और देखें
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