Maha Shivratri 2023: पाकिस्तान में है 900 साल पुराना चमत्कारी शिव मंदिर, माता सती के वियोग में यहां रोए थे भगवान भोलेनाथ!
Maha Shivratri 2023: यह मंदिर पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है। कटाक्ष कुंड का पानी दो रंगों में दिखाई पड़ता है। शुरुआत में हरे रंग का पानी दिखता है और ज्यादा गहराई में जाने पर पानी नीले रंग का हो जाता है।
भगवान भोलेनाथ का मंदिर (सोशल मीडिया)
- पाकिस्तान में स्थित है भगवान भोलेनाथ का मंदिर
- भगवान के आंसुओं से हुआ है कुंड का निर्माण
- दो रंगों में दिखाई देता है कुंंड का पानी
Maha Shivratri 2023: देव महादेव यानि भगवान भोलेनाथ की अराधना का सबसे बड़ा पर्व महा शिवरात्रि माना जाता है। नान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से भगवान शिव की पूजा करते हैं, उसके जीवन के सभी कष्ट हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं। न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया के कई जगहों पर भगवान शिव के मंदिर मौजूद हैं और भक्त उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। पाकिस्तान में भी भगवान भोलेनाथ का एक पौराणिक शिव मंदिर है। माना जाता है कि यह मंदिर 900 साल पुराना है।
धार्मिक महत्व
भगवान भोलेनाथ के इस मंदिर की सबसे बड़ी खास बात यह है कि यहां आकर भगवान भोलेनाथ माता सती के वियोग में रोए थे। उनकी आंखों से जो आंसू निकले थे, उससे कुंड का निर्माण हुआ था। यह मंदिर पाकिस्तान के कटसराज नामक स्थान पर है। मान्यता है कि माता सती की मृत्यु के बाद उनके वियोग में भोलेनाथ पहली बार यहीं आकर रोये थे। उन्होंने अपने आंसुओं को यहीं बहने दिया। माता सती के आत्मदाह का वियोग भगवान शिव बर्दाश्त नहीं कर पाए थे।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, अपने पिता दक्ष द्वारा भोलेनाथ का अपमान होता देख माता सती ने हवन कुंड में आत्मदाह कर लिया था। इससे भगवान भोलेनाथ बहुत आहत हुए थे। वह माता सती का वियोग बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। इस दुख से मुक्ति पाने के लिए भगवान भोलेनाथ पाकिस्तान स्थित कटस नामक जगह पर पहुंचे थे। यहां अपने आंसुओं को उन्होंने बहने दिया था। भगवान शिव के बहते आंसुओं से इस जगह पर दो कुंडों का निर्माण हुआ था।
दो रंगों में दिखता है कुंड का पानी
एक कुंड पाकिस्तान के कटस में स्थित कटाक्ष कुंड बना और दूसरा कुंड राजस्थान के पुष्कर स्थित कुंड बना। यह मंदिर पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं के लिए आस्था का बड़ा केंद्र है। कटाक्ष कुंड का पानी दो रंगों में दिखाई पड़ता है। शुरुआत में हरे रंग का पानी दिखता है और ज्यादा गहराई में जाने पर पानी नीले रंग का हो जाता है। इस जगह को लेकर एक और धार्मिक मान्यता है। माना जाता है कि अपने 12 साल के वनवास के दौरान पांडव भी इस जगह पर रहे थे। जब जंगलों में भटकने के दौरान उन्हें प्यास लगी थी तो उन्होंने इसी कटाक्ष कुंड का पानी पिया था।
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