कुछ ऐसी है गुजरात के नसवाडी तहसील में आए कडूली- महूडी गांव के आदिवासी किसान की कहानी

गुजरात के नसवाडी तहसील में आए कडूली- महूडी गांव के आदिवासी किसान काफी प्रेरणादायक है। उनकी कहानी ये बताती है की लोग जिंदा रहने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। जब गांव में सिंचाई के लिए पानी नहीं मिला और एक एक बूंद के लिए सब तरसने लगे तब छोटे से गांव के खुशाल भाई ने पत्थर तोड़ पानी निकालने का पुरुषार्थ शुरू किया।

"जब तक तोड़ेंगे नहीं तब तक छोड़ेंगे नहीं" मांझी द माउंटेन मैन का यह मशहूर डायलॉग गुजरात के आदिवासी किसान पर बिल्कुल सटीक बैठता है,,, गुजरात के छोटा उदयपुर जिले के नसवाडी तहसील में आए छोटे से कडूली- महूडी गांव मैं खुशाल भाई नानजी भाई हिम्मत और लगन सबके लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।

जब गांव में सिंचाई के लिए पानी नहीं मिला और एक एक बूंद के लिए सब तरसने लगे तब छोटे से गांव के खुशाल भाई ने पत्थर तोड़ पानी निकालने का पुरुषार्थ शुरू किया। खुशाल भाई यहां अपने छोटे से परिवार के साथ अपना जीवन गुजार रहे हैं गांव पथरीला होने के कारण पानी की बहुत तकलीफ है यहां रहती हैं और ऊपर से उनकी आमदनी इतनी नहीं कि वे पानी खरीद सकें।

पिछले 2 महीने से खुशालभाई इस काम में लगे हैं और उनके साथ उनका परिवार भी उनका हाथ बताता है दिन भर सिर्फ एक ही काम कुआं खोदना।

अचरज की बात तो यह है कि कुशाल भाई इसके पहले भी अपनी मां के साथ दो अलग-अलग जगहों पर कुआं खोदने का काम कर चुके हैं लेकिन पानी नहीं मिला। पर से उनके हौसलों में कमी नहीं आई।

पिछले 2 महीने में खुशालभाई ने 30 फीट उंडा और 40 फीट चौड़ा कुआ खोदकर सबको चौका दिया है। हौसलों की जब बात करें तो कुशाल भाई कहते हैं कि पत्थर में से पानी निकालने का यह काम वह मॉनसून तक चालू रखेंगे। इसमें कोई शक नही कि अद्भुत अदम्य साहस की परिभाषा बन चुका ये आदिवासी किसान शून्य से सृजन करने की इबारत गढ़ रहा है।

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Siddharth Pandya author

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