Jul 14, 2024
ताज होटल को बनने में करीब 14 साल लगे थे और साल 1903 में गेस्ट के लिए खोला गया था।
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साल 1889 में टाटा ग्रुप के फाउंडर जमशेदजी टाटा ने अचानक ऐलान किया कि वे बॉम्बे में एक भव्य होटल बनाएंगे।
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जमशेदजी टाटा ने जब ताज होटल बनाने की बात कही तो उनके परिवार में ही फूट पड़ गई। टाटा की बहनें उनका विरोध करने लगीं। सोर्स- लेखक हरीश भट की किताब टाटा स्टोरीज
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जमशेदजी टाटा की एक बहन ने गुजराती में कहा, ‘आप बैंगलोर में साइंस इंस्टिट्यूट बना रहे हैं, लोहे का कारखाना लगा रहे हैं और अब कह रहे हैं कि भतारखाना (होटल) खोलने जा रहे हैं’?
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जमशेदजी टाटा के दिमाग में बॉम्बे में भव्य होटल बनाने का आइडिया यूं ही नहीं आया था, बल्कि इसके पीछे एक कहानी और बदले की आग थी।
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दरअसल उन दिनों में बॉम्बे के काला घोड़ा इलाके में स्थित वाटसन्स होटल (Watson’s Hotel ) सबसे नामी हुआ करता था, लेकिन वहां सिर्फ यूरोप के लोगों को प्रवेश मिलता था।
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एक बार जमशेदजी टाटा वहां पहुंचे तो उन्हें यूरोपियन न होने के चलते एंट्री नहीं मिली। यह बात उनके दिल में बैठ गई थी।
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उन दिनों ताज होटल की कुल लागत 26 लाख रुपये तक पहुंच गई थी। जब ताज होटल खुला तब कमरों का किराया 6 रुपये प्रति दिन था। यह लगभग और होटलों के बराबर ही था।
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पहले दिन होटल में महज 17 गेस्ट पहुंचे। कई दिनों तक ऐसी स्थिति होने से ताज होटल के खर्चों ने जमशेदजी के सामने आर्थिक संकट खड़ा कर दिया। कुछ लोग इसे जमशेदजी का ”सफेद हाथी” तक कहने लगे।
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ताज होटल भारत का ऐसा पहला होटल था जहां कमरों को ठंडा रखने के कार्बन डाइऑक्साइड बर्फ निर्माण संयंत्र लगाया गया था। होटल के लिए लिफ्ट जर्मनी से मंगवाई गई थी, तो पंखे अमेरिका से आए थे।
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