May 24, 2024
ठंडी हवा के लिए ज्यादातर कूलर में इस समय खस की घास लगी होती है।
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एक ऐसा भी समय था जब भयंकर गर्मी में इसी खस की शरबत मिल जाया करती था। जिसे खस-खस यानी वेटीवर घास के पत्तों (क्राइसोपोगोन ज़िज़ानियोइड्स) से बनाया जाता है।
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इतना ही नहीं इस खस का इस्तेमाल जारा और डिओर जैसे ब्रांड आज अपने लग्जरी परफ्यूम में भी करते हैं।
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अगर हम इतिहास में झांककर देखें, तो पता चलेगा कि भारत हजारों सालों से खस निर्यात करता आ रहा है।
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दो हजार सालों से भी पहले लिखे गए प्राचीन संगम साहित्य में खस का उल्लेख ‘ओमलीगई’ के रूप में किया गया था, जिसका नहाने के समय इस्तेमाल किया जाता था।
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कन्नौज, हजारों सालों से दुनियाभर में मशहूर ‘मिट्टी इत्र’ समेत कई तरह के आकर्षक इतर बना रहा है।
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सूखी मिट्टी पर बारिश की बूंदें पड़ने के बाद, जो खुशबू आती है, बस उसी के एहसास से लबालब है यह मिट्टी इत्र।
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कन्नौज की खस ‘रुह’ आज अंतर्राष्ट्रीय व्यवसाय की दुनिया में बेशकीमती है।
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