Jun 8, 2024
मणिकर्णिका घाट वाराणसी के सबसे पवित्र और पुराने घाटों में से एक है।
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कहा जाता है कि मणिकर्णिका घाट पर जिसका अंतिम संस्कार होता है, उसे मोक्ष मिलता है।
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मणिकर्णिका घाट का जिक्र 5वीं शताब्दी के एक गुप्त अभिलेख में भी किया गया है।
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क्या आप जानते हैं कि इस घाट का नाम मणिकर्णिका कैसे पड़ा? दरअसल इसका संबंध एक पौराणिक कथा से है।
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जब माता सती अपने पिता के अपमान की वजह से अग्नि में समा गई थीं, तो भगवान शिव उनके शरीर को हिमालय तक ले गए।
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भगवान विष्णु ने शिव जी की दुर्दशा देख अपना सुदर्शन चक्र देवी सती के शरीर पर फेंका, जिससे उनका शरीर 51 टुकड़ों में बंट गया।
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माता सती के शरीर के टुकड़े धरती पर जिस स्थान पर गिरे उसे शक्तिपीठ घोषित किया गया।
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कहा जाता है कि माता सती के कान की बालियां वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर गिरी थी। जिस कारण इसका नाम मणिकर्णिका रखा गया।
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दरअसल मणिकर्ण का संस्कृत में अर्थ होता है कान का बाली।
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