Feb 17, 2024
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माना जाता है कि शुंभ-निशुंभ राक्षस का वध करने के बाद मां दुर्गा ने अपना अस्त्र जमीन पर फेंका, तो वहां गड्ढा बन गया और एक जलधारा बहने लगी। जो अस्सी घाट कहलाती है।
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यह काशी के सबसे प्रसिद्ध घाट में एक है। पुराणों में इस घाट को रुद्रसर कहा जाता है। माना जाता है कि यहां ब्रह्मा जी ने दस अश्वमेघ यज्ञ किए थे, जिस वजह से इसका नाम दशाश्वमेध पड़ा।
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यहां मणिकर्णिका कुंड है, इसलिए इसका नाम मणिकर्णिका पड़ा। माना जाता है कि पार्वती जी के कान की मणि चक्रपुष्कर्णी में गिर गई थी, जिस वजह से इस स्थान को मणिकर्णिका के नाम से जाना जाता था।
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माना जाता है कि राजा हरिश्चंद्र ने काशी के इसी श्मशान घाट में अपने बेटे का अंतिम संस्कार किया था। इसलिए इसे हरिश्चंद्र घाट कहा जाता है।
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इस घाट पर वीरेश्वर या आत्मविरेश्वर (शिव) मंदिर भी है। साल 1835 में इस मंदिर को ग्वालियर के महाराजा दौलतराव सिंधिया की पत्नी बैजाबाई सिंधिया को दिया गया था। जिसके बाद इसे सिंधिया घाट के नाम से जाना गया।
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इस घाट पर केदारेश्वर शिव का प्रसिद्ध मंदिर है, जिस वजह से इसे केदारघाट कहा जाने लगा। काशी के 12 ज्योतिर्लिंगों में केदारेश्वर शिव भी शामिल है।
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इस घाट पर बिंदुमाधव यानी भगवान विष्णु का मंदिर है, जिस वजह से इसे बिंदुमाधव घाट कहा जाता था। माना जाता है कि यहां गंगा नदी यमुना, सरस्वती, किरना और धूतपापा से मिलती है, इसलिए इसे पंचगंगा कहा जाने लगा।
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बिंदुमाधव घाट पर मौजूद बिंदुमाधव मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के भवन राव, महाराजा अवध (सतारा) ने करवाया था। जिस कारण इसका यह नाम पड़ा।
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मानसरोवर कुंड और घाट को आमेर (राजस्थान) के राजा मानसिंह ने बनवाया था, यही इसके नाम का कारण है।
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सन 1735 में इस घाट का निर्माण काशी के फौजदार मीर रुस्तम अली ने कराया था। जिस वजह से इसे मीर घाट कहा जाने लगा।
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ऐसा माना जाता है कि इसी घाट के पास भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद को उसके पिता हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से बचाया था, जिस वजह से इसका यह नाम पड़ा।
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यह घाट काशी का पहला विष्णुतीर्थ है। मान्यताओं के अनुसार, महादेव के कहने पर भगवान विष्णु गरुड़ पर सवार होकर पहली बार काशी आए थे। जिस वजह से इसका नाम आदिकेशव पड़ा।
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