Nov 12, 2023
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी दीपावली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है।
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कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा पर घर के द्वार पर गोबर से प्रतीकात्मक गोवर्धन पर्वत बनाकर लोग पूजा करते हैं।
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लेकिन क्या ये जानते हैं कि गोवर्धन पूजा की शुरुआत कैसे हुई। अगर, नहीं तो हम आपको बताते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने क्यों इस पूजा की शुरुआत की थी।
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दरअसल, एक बार भगवान श्रीकृष्ण सखाओं के साथ गोवर्धन पर्वत के आसपास गाएं चरा रहे थे।
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तभी गोपियों ने कहा कि आज मेघ और देवों के स्वामी इंद्र की पूजा होगी। पूजन से प्रसन्न होकर वे वर्षा करते हैं, जिससे अन्न पैदा होता है तथा ब्रजवासियों का भरण-पोषण होता है।
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श्रीकृष्ण बोले कि इंद्र में क्या शक्ति है? उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसी के कारण वर्षा होती है। हमें गोवर्धन की पूजा करना चाहिए।
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श्रीकृष्ण के कहने पर हो रही गोवर्धन पर्वत की पूजा को देख इंद्र को बहुत क्रोध आया। इंद्र ने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर मूसलाधार बारिश करें।
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बारिश से भयभीत गोपियां-ग्वाले श्रीकृष्ण की शरण में गए और रक्षा की प्रार्थना करने लगे। श्रीकृष्ण बोले-तुम सब गोवर्धन-पर्वत की शरण में चलो। वह सब की रक्षा करेंगे।
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श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी उंगली पर उठाकर छाते-सा तान दिया। गोप-ग्वाले सात दिन तक उसी की छाया में रहकर अतिवृष्टि से बच गए। चमत्कार देख इंद्र ने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी।
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श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा कि अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो। तभी से यह पर्व गोवर्धन पूजा के रूप में प्रचलित है।
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