Aug 6, 2023
गलौटी कबाब का जिक्र हो और लखनऊ के टुंडे कबाब का नाम जु़बां पर न आए, ऐसा हो नहीं सकता।
Credit: Social-Media
इन लजीज़ कबाबों की रेसिपी काफी खास होती है, जो एक सीक्रेट है। वैसे दुकानदार रईस अहमद बताते हैं कि इसे बनाने में 100 मसालों का प्रयोग होता है।
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रईस अहमद के पिता हाजी मुराद अली पतंग उड़ाने के शौकीन थे। हाथ में आई चोट के कारण उनका एक हाथ काटना पड़ा था।
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चोट आने के बाद वे दुकान पर बैठकर कबाब बनाने लगे। जो भी दुकान आता वो उनको टुंडा कहकर बुलाता, लेकिन उनके कबाब का स्वाद बेहद लजीज़ था। देखते ही देखते वे 'टुंडे कबाब' के नाम से फेमस हो गए।
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मुराद अली के कबाब का ज़ायका हर किसी को पसंद था। उन्होंने कबाब बनाने की सीक्रेट रेसिपी अपनी बेटियों को भी नहीं बताई।
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टुंडे कबाब की शुरुआत भोपाल में 1905 से हुई थी। मुराद अली के पूर्वज नवाबों के खानसामा थे।
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भोपाल के नवाब के दांत नहीं थे इसलिए उन्हें वो चीजें दी जाती थीं जिन्हें वे आसानी से खा सकें।
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नवाब के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए कबाब ईजाद हुए जिनमें बीफ के साथ पपीते का इस्तेमाल भी होता था।
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इसके बाद हाजी परिवार भोपाल से लखनऊ आ गया और मुराद अली ने अकबरी गेट के पास दुकान खोली।
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