Oct 7, 2023
भारत में हर महीने हाट बाजार के अलावा कहीं न कहीं मेला जरूर लगता है, जिसको देखने के लिए बड़ी सख्या में लोग जाते हैं।
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लेकिन आज हम इंसानों के मेले से हटकर पशुओं के मेले के बारे में बताएंगे,जिसकी कहानी सुनकर आप भी हैरान रह जाएंगे।
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इस मेले की परंपरा मुगल बादशाह औरंगजेब ने शुरू की थी। लोग बताते हैं इसी मेले से उसने अपनी मुगल सेना के बेड़े में गधे और खच्चर शामिल किए थे।
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तो चलिए आज हम मशहूर गधों के मेले के बारे में बताएंगे, जहां देश के कोने-कोने से खच्चरों के शौकीन यहां पहुंचते हैं।
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तो ये ऐतिहासिक गधों का मेला मध्य प्रदेश के जिले के सतना की धार्मिक नगरी चित्रकूट में मेला लगता आ रहा है। यहां अलग-अलग राज्यों से व्यापारी गधे-खच्चर लेकर आते हैं।
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कद-काठी,रंग और नस्लों के इन गधों-खच्चरों की कीमत 10 हजार रुपये से लेकर 1.50 लाख रुपये तक बोली लगती है।
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कहते हैं मुगल बादशाह औरंगजेब की सेना में जब असलहा और रसद ढोने वालों कमी हो गई तो पूरे इलाके से गधों खच्चरों को पालकों से इसी मैदान में इकट्ठा होने के लिए कहा गया। औरंगजेब ने यहीं गधों की खरीदारी शुरू की।
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दीपावली के दूसरे दिन से चित्रकूट की मंदाकिनी नदी के किनारे यह 3 दिवसीय मेला लगाया जाता है। 3 दिन के मेले में लाखों का कारोबार होता है।
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हालांकि, मेले के व्यवस्थापक कहते हैं कि आधुनिकता के दौर में मशीनों ने ट्रांसपोर्टेशन की जगह ले ली है। लिहाजा, गधों और खच्चरों की कीमतें और मुनाफा कम हो गया है।
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