Dec 16, 2024
एक समय था जब गिद्ध भारत में बहुतायत मात्रा में मौजूद थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। बहुत सी प्रजाति की तरह इनकी संख्या में भी तेजी से गिरावट आ रही है।
Credit: canva
बीबीसी डॉट कॉम पर छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, ये पक्षी मवेशियों के शवों की तलाश में गंदगी या कूड़े के ढेर के पर मंडराते थे।
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लेकिन दो दशक से भी ज्यादा समय पहले, बीमार गायों के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक दवा की वजह से भारत में गिद्ध मरने लगे।
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1990 के दशक के मध्य तक, 50 मिलियन गिद्धों की आबादी डाइक्लोफेनाक (diclofenac) के कारण लगभग खत्म होने को थी।
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ये दवा मवेशियों के लिए एक गैर-स्टेरायडल दर्द निवारक थी, लेकिन गिद्धों के लिए घातक व जानलेवा थी।
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इस दवा से उपचारित पशुओं के शवों को खाने वाले पक्षियों (गिद्धों) की किडनी फेल होने लगी और वे मरने लगे।
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डाइक्लोफेनाक के पशु चिकित्सा उपयोग पर 2006 में प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके बाद कुछ क्षेत्रों में गिद्धों की तेज से गिरती संख्या धीमी होती नजर आई।
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लेकिन भारत की लेटेस्ट India's Birds report के अनुसार, कम से कम तीन प्रजातियों को 91-98% जान से हाथ धोना पड़ा।
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अमेरिकन इकोनॉमिक एसोसिएशन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि इन पक्षियों के विनाश की वजह से घातक बैक्टीरिया और संक्रमण बढ़ने लगे हैं, जिससे पिछले पांच वर्षों में लगभग पांच लाख लोगों की मौत हो चुकी है।
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बता दें जब कोई जानवर मरता है, तो उसकी बॉडी को गिद्ध खा जाते हैं, लेकिन गिद्ध लगभग खत्म होने की वजह से मरे हुए जानवरों की बॉडी डिकंपोज होती है, और उनसे भयंकर बैक्टीरिया वायरस निकलते हैं, जो चूहे कुत्ते या दूसरे जानवरों की वजह से एक स्थान से दूसरे स्थान तक फैल जाते हैं।
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चूंकि गिद्धों के पेट में विशेष तरह का एसिड होता है, इसलिए वे सड़े से सड़े जानवर को भी खाकर पचा लेते थे।
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