Jun 19, 2023
डॉक्टरी एक ऐसा पेशा है, जिसमें काम करने वाला व्यक्ति न सिर्फ लोगों को स्वस्थ रखने में मदद करता है बल्कि कई मौकों पर लोगों की जान भी बचाते हैं।
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हाल ही में नीट यूजी परीक्षा का परिणाम आया है, जिसके बाद अंडर ग्रेजुएट मेडिकल कोर्सेज में एडमिशन मिलता है, और पढ़ाई के बाद डॉक्टरी करने का मौका मिलता है।
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मेडिकल एंट्रेस परीक्षा टॉप करने में या पास करने पर भी आपका नाम फैल जाता है, लेकिन किसी जमाने में ऐसा नहीं होता था।
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बहुत पहले मेडिकल एंट्रेस परीक्षा नहीं होती थी, ऐसे वक्त में भी एक महिला ने डॉक्टरी की पढ़ाई की, और देश की पहली महिला डॉक्टर बनने का गौरव हासिल किया।
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बात कर रहे हैं आनंदीबाई जोशी की, जिन्होंने 18वीं शताब्दी में डॉक्टर बनने की डिग्री हासिल की थी, यह वो समय था जब बेसिक शिक्षा भी आसानी से सबके नसीब नहीं थी।
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आनंदीबाई जोशी मात्र 9 वर्ष की थी जब उनकी शादी हुई, उनका विवाह उनसे 20 वर्ष बड़े गोपालराव से हुआ, वे मात्र 14 वर्ष की उम्र में ही मां बन गईं।
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मात्र 10 दिन में ही उनके बच्चे ने दुनिया को अलविदा कह दिया। इस दुख के बाद ही उन्होंने ठाना कि, वे डॉक्टर बनेंगी और आकस्मिक रूप से होने वाली मृत्यु को रोकेंगी।
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आनंदीबाई के पति गोपालराव ने पढ़ाई में उनका खूब साथ दिया। हालांकि, इस दंपति की काफी आलोचन की गई, लेकिन बिना इसके परवाह किए आनंदीबाई लक्ष्य की बढ़ती रहीं।
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आनंदीबाई का स्वास्थ्य ठीक न होने के बावजूद वे 1883 में कोलकाता के तट से पानी के जहाज से न्यूयॉर्क गईं और पेंसिल्वेनिया के महिला विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया।
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आनंदीबाई जोशी पढ़ाई पूरी करके 1886 भारत लौटी, लेकिन तबियत के चलते वे ज्यादा लंबी जिंदगी नहीे जी सकीं, और मात्र 22 वर्ष में जिंदगी छोड़ गई।
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