लंदन यूनिवर्सिटी में महात्मा गांधी ने मुगलों को लेकर कही थी ये बात

Neelaksh Singh

Oct 10, 2024

बाबर के वंशज

इसके बाद बाबर के वंशजों ने भारत पर लंबे समय तक राज किया, सारे मुगलों में सबसे कट्टरपंथी मुगल शासक माना गया औरंगजेब। एक बार महात्मा गांधी ने इस मुगल शासक के बारे में कहा था....

Credit: Canva-and-TNN

भारत का दिलचस्प इतिहास

bbc.com के अनुसार, बात है 1 नवंबर 1931 की जब महात्मा गांधी लंदन की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के पेम्ब्रोक कॉलेज में बोलने आने वाले थे। गांधी जी को सुनने में बड़े से बड़े रुचि रखते थे।

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कौन कौन था सुनने वालों में

इन सुनने वालों में से प्रमुख थे ब्रिटिश इतिहासकार जेम्स एलिस बार्कर, ब्रिटिश राजनीति-विज्ञानी और दार्शनिक गोल्ड्सवर्दी लाविज डिकिन्सन, प्रसिद्ध स्कॉटिश धर्मशास्त्री डॉ. जॉन मरे और ब्रिटिश लेखक एवलिन रेंच।

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खुलकर बोल रहे थे गांधी

गांधी जी उस दौरान खुलकर बोल रहे थे​ बोलते-बोलते एक स्थान पर उन्होंने कहा, स्वर्गीय मौलाना मुहम्मद अली (इतिहासकार) मुझसे अक्सर कहा करते थे कि "अगर अल्लाह ने मुझे इतनी ज़िंदगी बख्शी तो मेरा इरादा भारत में मुसलमानी हुक़ूमत का इतिहास लिखने का है...

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मौलाना मुहम्मद अली ने कहा

उसमें दस्तावेजी सबूतों के साथ यह दिखा दूंगा कि अंग्रेजो ने गलती की है, औरंगज़ेब उतना बुरा नहीं था जितना बुरा अंग्रेज़ इतिहासकारों ने दिखाया है, मुगल हुकूमत इतनी खराब नहीं थी, जितनी खराब अंग्रेज इतिहासकारों ने बताई है।"

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हिंदू मुस्लिम हमेशा से नहीं थे विरोधी

"हिंदू इतिहासकारों ने भी लिखा है कि हिंदू और मुस्लिमों में झगड़ा पुराना नहीं है, ये तो तब शुरू हुआ जब हम गुलामी की शर्मनाक स्थिति में पड़े।"

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गांधी जी की पहली किताब

बता दें, गांधी ने अपनी पहली किताब 'हिंद स्वराज' में ही इसपर विस्तार से लिखा था, कि भारत का इतिहास लिखने में तत्कालीन विदेशी इतिहासकारों ने दुर्भावना और राजनीति से काम लिया, मुग़ल बादशाहों से लेकर टीपू सुल्तान तक के इतिहास को तोड़-मरोड़कर हिंदू-विरोधी दिखाने की कोशिश की गई।

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महात्मा गांधी को पसंद थी औरंगज़ेब की सादगी

महात्मा गांधी को औरंगज़ेब की सादगी और श्रमनिष्ठा बहुत प्रभावित करती थी। 21 जुलाई, 1920 को 'यंग इंडिया' में लिखे अपने प्रसिद्ध लेख 'चरखे का संगीत' में गांधी ने कहा था...

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औरंगज़ेब का रखा उदाहरण

"पंडित मालवीयजी ने कहा है कि जब तक भारत की रानी-महारानियां सूत नहीं कातने लगतीं, और राजे-महाराजे करघों पर बैठकर राष्ट्र के लिए कपड़े नहीं बुनने लगते, तब तक उन्हें संतोष नहीं होगा। उन सबके सामने औरंगज़ेब का उदाहरण है, जो अपनी टोपियां खुद ही बनाते थे।"

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