Jan 5, 2025
इन्हीं नौ लोगों में से एक थे मुल्ला-दो-प्याजा जिन्हें मुगलिया सल्तनत का ऐसा इंसान माना गया जिसके नाम और काम को लेकर लोगों में सबसे ज्यादा दिलचस्पी रही।
Credit: META-AI
इनका असली नाम था अब्दुल हसन, जिन्हें किताबें पढ़ने का गजब का शौक था। वे हमेशा से अकबर के नवरत्नों में शामिल होना चाहते थे। जाहिर है भारत के बादशाह के सबसे करीबी सलाहकारों में से एक बनना आसान नहीं रहा होगा।
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अब्दुल हसन उस समय के हिसाब से बहुत पढ़े लिखे थे, वे महीनों की मशक्कत के बाद शाही परिवार के मुर्गीखाना के प्रभारी बने। लेकिन उनका लक्ष्य अकबर के नौ रत्न में शामिन होना था।
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बीबीसी पर छपे एक लेख के अनुसार, अब्दुल ने महीनेभर तक मुर्गियों को केवल वो खाना खिलाया, जो शाही रसोई में बच जाता था। इससे मुगियों को दिए जाने वाले चारे का खर्च बच गया। इस बात से प्रभावित होकर उन्हें शाही पुस्तकालय का प्रभारी बनाया गया।
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हसन ने अपने दिमाग से पुस्तकालय में केवल उन मखमल और जरी के पर्दे बनवा कर लटकाए, जो बादशाह को तोहफे में मिलते थे, एक बार जब बादशाह अकबर पुस्तकालय गए तो उन्हें हसन से इस कदर प्रभावित हुए कि हसन को नवरत्नों में शामिल कर लिया।
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अब्दुल हसन का धीरे-धीरे मुगल दरबारियों से मेलजोल बढ़ने लगा, एक दिन इनकी मुलाकात अकबर के नवरत्नों में एक फैजी से हुई। दोनों में दोस्ती बढ़ी और फैजी ने हसन को मुर्ग गोश्त की दावत पर बुलाया।
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अब्दुल को पकवान पसंद बनाया और नाम पूछा, तो फैजी ने कहा ये 'मुर्ग दो प्याजा' था। हसन इस स्वाद के इस कदर दीवाने हुए कि जब भी शाही दावत में बुलाया जाता तो यही बनवाया जाता। इस पकवान में प्याज का खास तरह से इस्तेमाल होता था।
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जब मुगल बादशाह ने अब्दुल हसन को शाही बावर्चीखाने की जिम्मेदारी तो उन्होंने मुर्ग दो प्याजा बनवाकर पेश किया। उसका जायका अकबर को इतना पसंद आया कि अब्दुल हसन को ‘दो प्याजा’ की उपाधि से नवाजा गया।
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चूंकि हसन कभी मस्जिद में इमाम रह चुके थे, इसलिए अब्दुल को मुल्ला भी कहा जाता था, यहीं से उन्हें मुल्ला-दो-प्याजा कहा जाने लगा।
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