Feb 12, 2023
नालंदा यूनिवर्सिटी का निर्माण नरसिम्हा देव ने छठी शताब्दी ईसा पूर्व में कराया और लगभग 10,000 छात्रों और 2700 संकायों के साथ 800 से ज्यादा सालों तक यह सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय रहा। जहां कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया, ग्रेटर ईरान, फारस, ग्रीस, मंगोलिया से लोग आते थे।
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विश्वविद्यालय में 10 मंदिर, ध्यान केंद्र और दुनिया का सबसे बड़े पुस्तकालय में रत्नसागर, रत्नाधि और रत्नरंजका नाम की तीन 9 मंजिला इमारते थीं। इसमें धार्मिक पांडुलिपियों सहित साहित्य, दर्शन, ज्योतिष, विज्ञान, युद्ध, कानून, इतिहास, अर्थशास्त्र, गणित, भूविज्ञान, भाषा विज्ञान, वास्तुकला, धातु विज्ञान, खगोल विज्ञान, चिकित्सा और कई विषयों की पुस्तकें थीं।
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चीनी यात्री ह्वेन त्सांग सहित प्राचीन काल के कई यात्रियों ने भारत का दौरा किया और उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन किया। वह पुस्तकालय में कई विषयों पर इतनी सारी पुस्तकों का संग्रह देखकर चकित रह गए थे।
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हम नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय की विशालता को इस बात से आसानी से समझ सकते हैं कि आक्रमणकारियों के हमले के बाद इसे जलने में कई महीने लगे। जलती हुई अमूल्य पुस्तकों और लगभग 9 मिलियन पांडुलिपियों का धुआं वहां कई दिनों तक फैला रहा।
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साल 1193 में, नालंदा विश्वविद्यालय को कट्टर आक्रांता बख्तियार खिलजी ने नष्ट किया और बौद्ध धर्म को उखाड़ फेंकने की कोशिश में हजारों भिक्षुओं को जिंदा जला दिया और इस प्रकार भारतीयों को अंधकार युग में धकेल दिया गया। इसी के साथ ज्ञान की बड़ी संपदा भी खो गई।
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स्कंदगुप्त के शासनकाल में हूणों का हमला हुआ लेकिन स्कंद के उत्तराधिकारियों ने भवन और संकायों के साथ पुस्तकालय जीर्णोद्धार कराया। दूसरा विनाश गौडों ने किया और बौद्ध राजा हर्षवर्धन ने नुकसान को ठीक किया। लेकिन तुर्की के बख्तियार खिलजी की सेना ने 1193 में सबसे विनाशकारी हमला कर देश से ज्ञान, बौद्ध धर्म और आयुर्वेद की जड़ों को नष्ट करने की कोशिश की।
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नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने वाले कुछ प्रसिद्ध विद्वानों में हर्षवर्धन, धर्मपाल, वसुबंधु, सुविष्णु, धर्मकीर्ति, असंग, शांतरक्षिता, आर्यदेव, नागार्जुन, पद्मसंभव, आर्यभट्ट और ह्वेनसांग शामिल हैं। बौद्ध धर्म के कई गुरु इसी संस्थान की देन थे।
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अच्छी खबर यह है कि कई वर्षों से नालंदा को पुनर्जीवित करने की योजना है और वर्तमान में विश्वविद्यालय दो विभागों के साथ काम कर रहा है। यह सब तब शुरू हुआ जब हमारे पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने अपने कार्यकाल के दौरान नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों का दौरा किया।
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डॉ. कलाम ने विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने का प्रस्ताव दिया और इसे मंजूरी मिल गई। वर्तमान में, नालंदा विश्वविद्यालय के पास एक आत्मनिर्भर परिसर है और यह पड़ोसी गांवों के लिए ऊर्जा का स्रोत है।
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