डूब जाती मुगल सल्तनत की लोटिया? अगर न होता हुमायूं का ये दोस्त

Neelaksh Singh

Jan 2, 2025

हुमायूं का कार्यकाल

हुमायूं का कार्यकाल बहुत लंबा नहीं रहा, इन्होंने पहले 1530–1540 तक मुगलिया सल्तनत संभाली, इसके बाद 1555—56 में एक बार और छोटे समय के लिए गद्दी संभाली।

Credit: meta-ai-and-canva

हुमायूं की मौत

हुमायूं की जब मौत हुई तो इनके बेटे यानी अकबर मात्र 13 वर्ष के थे, और इस उम्र में वे शासन नहीं संभाल सकते थे।

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हुमायूं का दोस्त

ऐसे में हुमायूं के दोस्त बैरम खां ने मुगलिया सल्तनत व अकबर के लिए बहुत कुछ किया, बैरम खां न केवल मुगल दरबार के सबसे विश्वासपात्र दरबारी थे, बल्कि हुमायूं के मौत के बाद अकबर के शिक्षक व अभिभाव​क का भी रोल अदा किया।

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बैरम खां ने संभाली मुगलों की इज्जत

जाहिर है बादशाह हुमायूं की मौत के बाद बहुत से दुश्मनों ने मुगलों पर आक्रमण करने की सोची होगी, अकबर की ताजपोशी करने से रोका होगा, लेकिन ये सब मुमकिन हो पाया बैरम खां की वजह से

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अकबर की ताजपोशी

1556 में हुमायूं की मौत हुई और इसी साल अकबर की ताजपोशी करा दी गई।

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तख्त-ए-अकबर

अबुल फजल (अकबर के नौ रत्नों में से एक) ने ‘अकबरनामा’ में लिखा है, हुमायूं की मौत के बाद बैरम खां ने जिस चबूतरे पर अकबर की ताजपोशी की उसे तख्त-ए-अकबर नाम दिया गया।

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वकील-उस-सल्तनत का दर्जा

Bairam Khan (बैरम खां) को उसकी योग्यता व कर्तव्यों के लिए वकील-उस-सल्तनत का दर्जा दिया गया। ये मुगल सल्तनत के सबसे ओहदे में शामिल था।

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सबसे कम उम्र का मुगल शहंशाह

अकबर को शहंशाह घोषित किया गया, लेकिन 13 साल के अकबर अभी तैयार नहीं थे, ऐसे में वो बैरम खां ही था, जिसने मुगल सेना की बागडोर संभाली।

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बैरम खां ने बचाया मुगल सेना को

हुमायूं की मौत के बाद यदि बैरम खां नहीं होते तो बहुत आसानी से तख्ता पलट हो सकता था, लेकिन बैरम खां ने मुगल सेना को कमजोर नहीं पड़ने दिया।

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