Feb 3, 2024
भारतीय जनता पार्टी को बुलंदियों पर पहुंचाने वाले लालकृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी के रिश्तों में कई उतार-चढ़ाव आए हैं। बाद में दोनों के रिश्तों में तल्खी आई और प्रधानमंत्री पद की रेस में नरेंद्र मोदी आगे निकल गए।
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आडवाणी ने ही मोदी की गुजरात की मुख्यमंत्री की कुर्सी बचाई थी। मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री इसीलिए बरकरार रह पाए क्योंकि 2002 के गुजरात दंगों के बाद उन्हें आडवाणी ने ही बचाया था।
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बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने मोदी को हटाने की तैयारी पूरी कर ली थी। लेकिन आडवाणी ने बचा लिया।
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1980 के दशक में आडवाणी ने मोदी की क्षमता पहचाकर उन्हें अपने साथ आगे बढ़ने का मौका दिया था। 1984 में बीजेपी को दो सीट मिलने के बाद आडवाणी ने पार्टी की राज्य इकाइयों में संगठन सचिव के पद को मजबूत किया। गुजरात में मोदी को कमान मिली।
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नरेंद्र मोदी ने 1987 में आडवाणी की न्याय यात्रा, 1989 में लोकशक्ति यात्रा, 1990 में अयोध्या रथ यात्रा को सफल बनाने में जी तोड़ मेहनत की।
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2005 में जिन्ना पर दिए आडवाणी के बयान की आरएसएस-बीजेपी में जबरदस्त आलोचना हुई। आडवाणी के समर्थन में मोदी नहीं आए। इसके करीब तीन महीने बाद आडवाणी को अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा।
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2011 में आडवाणी भ्रष्टाचार के खिलाफ पोरबंदर से यात्रा निकालना चाहते थे लेकिन मोदी ने सदभावना यात्रा शुरू कर दी। तब आडवाणी ने मोदी के धुर विरोधी नीतीश कुमार के प्रदेश बिहार से अपनी यात्रा शुरू की।
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जून 2013 में गोवा कार्यकारिणी से पहले बीजेपी में मोदी को पीएम बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी थी। तब आडवाणी इससे नाखुश बताए जाते थे।
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2009 के लोकसभा चुनाव में आडवाणी के नेतृत्व में हार मिली जिसके बाद 2014 में मोदी के चेहरे के साथ आगे बढ़ी बीजेपी ने चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज की और आडवाणी नेपथ्य में चले गए।
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भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य और राम मंदिर आंदोलन के अगुआ रहे लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न से सम्मानित किए जाने का फैसला लिया गया है।
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