Jan 18, 2025
रानी लक्ष्मीबाई के वीरता के किस्सों से भारतीय इतिहास भरा हुआ है, जो देश के खातिर अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते शहीद हो गईं थीं
Credit: wikimedia-commons/social-media
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों से कहा था कि वह मरते दम तक अपनी झांसी किसी को नहीं देगी
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राजा गंगाधर राव की मौत के बाद झांसी को वह अपने ब्रिटिश शासन के तहत लाना चाहते थे
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अंग्रेजों ने दामोदर राव को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया और किला खाली करने के लिए कहा
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तो उन्होंने अंग्रेजों का ललकारते हुए उनका फरमान को मानने से इनकार कर दिया रानी ने अंग्रजों के खिलाफ बगावत कर दी और रानी ने कई बार अंग्रेजों को धूल चटाई
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18 जून 1858 को जब झांसी की रानी को अंग्रेजों ने घेर लिय तो वो अपनी तलवार से गोरों की गर्दन कलम करते घोड़े को किले से नीचे उतार ले गईं
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कहते हैं कि तभी एक अंग्रेज सैनिक ने उनपर हमला कर दिया, जिससे वो बुरी तरह घायल हो गईं और उनका घोड़ा भी घायल हो गया
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रानी के वफादार सैनिक उन्हें लेकर पास में ही संत गंगादास की बड़ी शाला में पहुंचे उन्होंने गंगादास से कहा कि, 'बाबा मेरे शरीर को गोरे अंग्रेजों को नहीं छूने देना' इतना कहकर रानी लक्ष्मीबाई ने प्राण त्याग दिए
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वहां गंगादास और काफी संख्या में साधु रहते थे शाला परिसर में ब्रिटिश फौज आ चुकी थी गंगादास ने आदेश दिया कि अंग्रेजों को रोका जाए, ताकि रानी का अंतिम संस्कार किया जा सके।
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अंग्रेजों ने कुटिया पर हमला बोल दिया लेकिन रानी की आखिरी इच्छा को पूरा करने के लिए साधु भी ब्रिटिश फौज के खिलाफ उतर गए और रानी के शव की रक्षा करते हुए 745 साधु शहीद हो गए
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