Feb 27, 2024
'शहर ए अदब' लखनऊ की चिकनकारी भारत ही नहीं दुनियाभर में मशहूर है। इसकी कढ़ाई जितनी खूबसूरत दिखती है, इसका काम उतना ही मेहनत वाला है।
Credit: instagram
चिकनकारी की कढ़ाई इतनी बारीक होती है कि 5 मीटर की एक साड़ी बनाने में 8 दिन लग जाते हैं।
Credit: instagram
कपड़े पर जालीदार कढ़ाई करना मुश्किल है और ये कढ़ाई महंगी होती है। इसलिए अब नेट पर कढ़ाई करके कपड़े पर पैच लगा दिया जाता है।
Credit: instagram
चिकनकारी के लिए ज्यादातर कच्चे धागे का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन फैब्रिक के हिसाब से भी धागा बदल जाता है।
Credit: instagram
जॉर्जेट और सिल्क के कपड़े पर रेशम के धागे से कढ़ाई होती है, लेकिन चिकनकारी के लिए सूती कच्चा धागा खास माना जाता है।
Credit: instagram
चिकनकारी की खास कढ़ाईयों के नाम कील, कंगन, घास पत्ती, मुर्री, जंजीरा, टेपचि, बखिया फंदा, पेचनी, बिजली और काथा है।
Credit: instagram
इतनी मेहनत के बावजूद कारीगरों को मजदूरी बहुत कम मिलती है, जबकि कपड़ों की कीमत हजारों- लाखों में होती है।
Credit: instagram
हल्के शैडो वर्क की कढ़ाई के लिए मजदूरों को 50 रुपये मिलते हैं, वहीं फैंसी काम में ज्यादा से ज्यादा 250-300 रुपये मिल जाते हैं।
Credit: instagram
चिकनकारी का अधिकतर काम घरेलू महिलाओं से करवाया जाता है। पुरुष कारीगर सिर्फ कुर्ते की सिलाई और डिजाइन के छापे जैसे काम करते हैं।
Credit: instagram
Thanks For Reading!