Sep 16, 2024

'मुसाफ़िर हो तुम भी ..', जिंदगी की कश्मकश में सुकून के पल जैसे हैं बशीर भद्र के ये शेर

Suneet Singh

उजाले अपनी यादों के

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए

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मजबूरियां

कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी, यूँ कोई बेवफ़ा नहीं होता

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ज़िंदगी तू ने मुझे..

ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं, पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है

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गुंजाइश

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हो जाएँ तो शर्मिंदा न हों

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मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती..

मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला, अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला

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यहां लिबास की क़ीमत है ..

यहां लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं, मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे

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मुसाफ़िर

मुसाफ़िर हैं हम भी मुसाफ़िर हो तुम भी, किसी मोड़ पर फिर मुलाक़ात होगी

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ज़रा फ़ासले से मिला करो

कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से, ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो

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इतना मत चाहो उसे..

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा, इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जाएगा

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