Srishti
Dec 29, 2024
उम्र जाया कर दी लोगों ने, औरों में नुक्स निकालते-निकालते,इतना खुद को तराशा होता, तो फरिश्ते बन जाते।
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एक सुकून की तलाश में जाने कितनी बेचैनियां पाल लीं,और लोग कहते हैं कि हम बड़े हो गए हमने ज़िंदगी संभाल ली।
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मेरी कोई खता तो साबित कर,जो बुरा हूं, तो बुरा साबित कर,तुम्हें चाहा है कितना तू क्या जाने,चल मैं बेवफा ही सही,तू अपनी वफा साबित कर।
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पलक से पानी गिरा है, तो उसको गिरने दो,कोई पुरानी तमन्ना, पिघल रही होगी।
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हम समझदार भी इतने हैं के,उनका झूठ पकड़ लेते हैं,और उनके दीवाने भी इतने के फिर भी,यकीन कर लेते है।
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पूरे की ख्वाहिश में ये इंसान बहुत कुछ खोता है,भूल जाता है कि आधा चांद भी खूबसूरत होता है।
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दौलत नहीं, शोहरत नहीं.. न वाह चाहिए,कैसे हो? बस दो लफ्जों की परवाह चाहिए..
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टूट जाना चाहता हूं, बिखर जाना चाहता हूं,मैं फिर से निखर जाना चाहता हूं,मानता हूं मुश्किल है,लेकिन में फिर गुलज़ार होना चाहता हूं।
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किसने रास्ते में चांद रखा था,मुझको ठोकर लगी कैसे,वक्त पे पांव कब रखा मैने,जिंदगी मुंह के बल गिरी कैसे,आंख तो भर आई थी पाई से,तेरी तस्वीर जल गई कैसे।
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