Ritu raj
Jan 1, 2025
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता हैमगर धरती की बैचेनी को बस बादल समझता हैमै तुझसे दूर कैसा हुँ तू मुझसे दूर कैसी हैयह तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है
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ज़ख्म भर जाएंगे, तुम मिलो तो सहीदिन सँवर जाएंगे, तुम मिलो तो सहीरास्ते में खड़े दो अधूरे सपनएक घर जाएंगे, तुम मिलो तो सही
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मैं ज़माने की ठोकर ही खाता रहूँतुम ज़माने को ठोकर लगाती रहोजि़ंदगी के कमल पर गिरूँ ओस-सारोष की धूप बन तुम सुखाती रहो
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जो किए ही नहीं कभी मैंनेवो भी वादे निभा रहा हूँ मैंमुझसे फिर बात कर रही है वोफिर से बातों में आ रहा हूँ मैं
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नज़र अक्सर शिकायत आजकल करती है दर्पण से,थकन भी चुटकियाँ लेने लगी है तन से और मन से,कहाँ तक हम संभाले उम्र का हर रोज़ गिरता घर,तुम अपनी याद का मलबा हटाओ दिल के आँगन से..!
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मैं अपने गीत-ग़ज़लों से उसे पैग़ाम करता हूँउसी की दी हुई दौलत उसी के नाम करता हूँहवा का काम है चलना, दिए का काम है जलनावो अपना काम करती है, मैं अपना काम करता हूँ
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हर एक कपड़े का टुकड़ा माँ का आंचल हो नहीं सकता,जिसे दुनिया को पाना है वो पागल हो नहीं सकता,जफाओं की कहानी जब तलक इसमें न शामिल हो,मुहब्बत का कोई किस्सा मुकम्मल हो नहीं सकता..।
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एक दो दिन में वो इकरार कहाँ आएगाहर सुबह एक ही अखबार कहाँ आएगाआज जो बाँधा है इनमें तो बहल जायेंगेरोज़ इन बाँहों का त्यौहार कहाँ आएगा
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तुम्हारा ख्वाब जैसे ग़म को अपनाने से डरता हैहमारी आँख का आँसू, खुशी पाने से डरता हैअजब है लज़्ज़ते ग़म भी जो मेरा दिल अभी, कल तकतेरे जाने से डरता था, वो अब आने से डरता है..!
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