Apr 04, 2025
मजरूह सुल्तानपुरी के 10 मशहूर शेर: कुछ बता तू ही नशेमन का पता, मैं तो ऐ बाद-ए-सबा भूल गया
Suneet Singh
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर, लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
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देख ज़िंदां से परे रंग-ए-चमन जोश-ए-बहार, रक़्स करना है तो फिर पांव की ज़ंजीर न देख
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कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा, हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा
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शब ए इंतजार की कश्मकश में न पूछ कैसे सहर हुई, कभी इक चराग़ जला दिया कभी इक चराग़ बुझा दिया
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जफ़ा के ज़िक्र पे तुम क्यूं संभल के बैठ गए, तुम्हारी बात नहीं बात है ज़माने की
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ग़म-ए-हयात ने आवारा कर दिया वर्ना, थी आरज़ू कि तिरे दर पे सुब्ह ओ शाम करें
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बहाने और भी होते जो ज़िंदगी के लिए, हम एक बार तिरी आरज़ू भी खो देते
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रोक सकता हमें ज़िंदान-ए-बला क्या 'मजरूह', हम तो आवाज़ हैं दीवार से छन जाते हैं
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अलग बैठे थे फिर भी आंख साक़ी की पड़ी हम पर, अगर है तिश्नगी कामिल तो पैमाने भी आएंगे
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