May 23, 2024
मीरा बाई खुद को कृष्ण के प्रेम में इस कदर भुला चुकी थीं कि उन्हें कुछ होश नहीं था। लेकिन उन्होंने सब त्याग कर भी सब कुछ पा लिया था, उन्हें कृष्ण दीवानी कहा जाने लगा था।
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मीरा बाई को कृष्ण की भक्ति की कीमत अपने महल और वहां की सुख-सुविधाओं को छोड़कर चुकानी पड़ी थी। जिसे उन्होंने खुशी-खुशी स्वीकार्य किया।
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इससे साबित होता है कि प्रेम में पड़े व्यक्ति के लिए उसके प्रियतम से बड़ा कोई धन नहीं होता है। उसके लिए सब कुछ उसका प्यार होता है।
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आज के समय में प्यार यही देखकर किया जाता है कि सामने वाला व्यक्ति मुझे क्या दे सकता है।
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मीरा बाई से सीखें तो सच्चा प्यार वो होता है जिसमें कुछ भी हासिल करने की इच्छा ही खत्म हो जाती है। जब प्यार इस कद्र हो जाए तो यह भक्ति में बदल जाता है।
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मीरा ने सिखाया कि सच्चा प्रेम सिर्फ एक बार होता है। यह किसी कभी ना ठीक होने वाले रोग की तरह होता है। हो जाने पर इससे व्यक्ति कभी भी खुद को आजाद नहीं कर पाता है।
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इसके लिए उसे उस व्यक्ति की भी जरूरत नहीं होती है जिससे वह प्यार करता है। उसका अहसास उससे जुड़ी यादें और उससे दोबारा मिलने की उम्मीद ही व्यक्ति के जीने का सहारा होती है।
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आज के समय में हर कोई अपने पार्टनर से शिकायत करता है कि तुम्हें मेरी परवाह नहीं है, मेरे लिए कुछ करते नहीं हो, मैं क्या चाहती/ चाहता हूं इससे तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, वगैरह-वगैरह।
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मीरा बाई से सीखें तो यह सच्चा प्रेम नहीं हो सकता है। क्योंकि प्यार करने वाला व्यक्ति बदले में पाने की इच्छा रखे बिना खुशी-खुशी सिर्फ देना जानता है।
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